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कायाकल्प]
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से कुछ भोजन नहीं मिला?

राजा—एक सप्ताह से भोजन नहीं मिला। यह आप क्या कहते हैं? मैने सख्त ताकीद कर दी थी कि हर एक मजदूर को इच्छा पूर्ण भोजन दिया जाय। क्यों दीवान साहब, क्या बात है?

हरिसेवक—धर्मावतार, आप इन महाशय की बातों में न आइए। यह सारी आग इन्हीं की लगायी हुई है। प्रजा को बहकाना और भड़काना इन लोगों ने अपना धर्म बना रखा है। यहाँ से हर एक आदमी को दोनों वक्त भोजन दिया जाता था।

मुंशी—दीनबन्धु, यह लड़का बिलकुल नासमझ है। दूसरों ने जो कुछ कह दिया, उसे सच समझ लेता है। तुमसे किसने कहा बेटा, कि आदमियो को भोजन नहीं मिलता था? भण्डारी तो मैं हूँ, मेरे सामने जिन्स तौली जाती थी। मैं पूछ पूछकर देता था। बारातियों की भी कोई इतनी खातिर न करता होगा। इतनी बात भी न जानता, तो तहसीलदारी क्या खाक करता।

राजा—मैं इसकी पूछ-ताछ करूँगा।

हरिसेवक—हुजूर, इन्हीं लोगों ने आदमियों को उभारकर सरकश बना दिया है। ये लोग सबसे कहते फिरते हैं कि ईश्वर ने सभी मनुष्यों को बराबर-बराबर बनाया है, किसी को तुम्हारे ऊपर राज्य करने का अधिकार नहीं है, किसी को तुमसे बेगार लेने का अधिकार नहीं। प्रजा ऐसी बातें सुन-सुनकर शेर हो गयी है।

राजा—इन बातों में तो मुझे कोई बुराई नही नजर आती। मै खुद प्रजा से यही बातें कहना चाहता हूँ।

हरिसेवक—हुजूर, ये लोग कहते है, जमीन के मालिक तुम हो। जो जमीन से बीज उगाये, वही उसका मालिक है। राजा तो तुम्हारा गुलाम है।

राजा—बहुत ठीक कहते हैं। इसमें मुझे तो बिगड़ने की कोई बात नहीं मालूम होती। वास्तव में मैं प्रजा का गुलाम हूँ; बल्कि उसके गुलाम का गुलाम हूँ।

हरिसेवक—हुजूर, इन लोगो की बातें कहाँ तक कहूँ। कहते हैं, राजा को इतने बड़े महल में रहने का कोई हक नहीं। उसका संसार में कोई काम ही नहीं।

राजा—बहुत ही ठीक कहते हैं। आखिर मैं पड़े-पड़े खाने के सिवा और क्या करता हूँ।

चक्रधर ने झुँझलाकर कहा—ठाकुर साहब, आप मेरे स्वामी है लेकिन क्षमा कीजिए, आप मेरे साथ बड़ा अन्याय कर रहे हैं। मैने प्रजा को उनके अधिकार अवश्य समझाये हैं, लेकिन यह कभी नही कहा कि राजा को संसार में रहने का कोई हक नहीं; क्योंकि मैं जानता हूँ, जिस दिन राजाओं की जरूरत न रहेगी, उस दिन उनका अन्त हो जायगा। देश में उसी की राज्यव्यवस्था होती है, जिसका अधिकार होता है।

राजा—में तो बुरा नहीं मानता, जरा भी नहीं। आपने कोई ऐसी बात नहीं कही, जो और लोग न कहते हो। वास्तव में जो राजा के प्रति अपने कर्तव्य का पालन