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कायाकल्प]
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दिल में श्रापसे सौगुना प्रेम न हो गया हो। आपने हमें सच्चे साहस, सच्चे आत्मबल और सच्चे कर्तव्य का रास्ता दिखा दिया। जाइए, जिस काम का बीड़ा उठाया है, उसे पूरा कीजिए, हमारी शुभ कामनाएँ आपके साथ हैं।

उसने इसी अवसर के लिए कई दिन से ये वाक्य रच रखे थे। इस भाँति उद्गारों को न बाँध रखने से वह आवेश में जाने क्या कह जाती।

चक्रधर ने केवल दबी आँखों से मनोरमा को देखा, कुछ बोल न सके। उन्हें शर्म आ रही थी कि लोग दिल में क्या खयाल कर रहे होंगे। सामने राजा विशालसिह, दीवान साहब, ठाकुर गुरुसेवक और मुंशी वज्रधर खड़े थे। बरामदे में हजारों आदमियों की भीड़ थी। धन्यवाद के शब्द उनकी जबान पर आकर रुक गये। वह दिखाना चाहते थे कि मनोरमा की यह वीर-भक्ति उसकी बाल-क्रीड़ा मात्र है।

एक क्षण में सिपाहियों ने चक्रधर को बन्द गाड़ी में बिठा दिया और जेल की ओर ले चले। धीरे-धीरे कमरा खाली हो गया। मिस्टर जिम ने भी चलने की तैयारी की। तहसीलदार साहब के सिवा अब कमरे में और कोई न था। जब जिम कठघरे से नीचे उतरे, तो मुंशीजी आँखों में आँसू भरे उनके पास आये और बोले—मिस्टर जिम, मैं तुम्हें आदमी समझता था; पर तुम पत्थर निकले। मैंने तुम्हारी जितनी खुशामद की, उतनी अगर ईश्वर की करता, तो मोक्ष पा जाता। मगर तुम न पसीजे। रियाया का दिल यों मुट्ठी में नहीं आता। यह धाँधली उसी वक्त तक चलेगी, जब तक यहाँ के लोगों की आँखें बन्द हैं। यह मजा बहुत दिनों तक न उठा सकोगे।

यह कहते हुए मुंशीजी कमरे से बाहर चले आये। जिम ने कुपित नेत्रों से देखा, पर कुछ बोला नहीं। चक्रधर जेल पहुँचे, तो शाम हो गयी थी। जाते ही जाते उनके कपड़े उतार लिये गये और जेल के वस्त्र मिले। लोटा और तसला भी दिया गया। गरदन में लोहे का नम्बर डाल दिया गया। चक्रधर जब ये कपड़े पहनकर खड़े हुए, तो उनके मुख पर विचित्र शान्ति की झलक दिखायी दी, मानो किसी ने जीवन का तत्व पा लिया हो। उन्होंने वही किया, जो उनका कर्तव्य था और कर्तव्य का पालन ही चित्त की शान्ति का मूल-मन्त्र है।

रात को जब वह लेटे, तो मनोरमा की सूरत आँखों के सामने फिरने लगी। उसकी एक-एक बात याद आने लगी और हर बात में कोई-न-कोई गुप्त आशय भी छिपा हुआ मालूम होने लगा। लेकिन इसका अन्त क्या? मनोरमा, तुम क्यों मेरे झोंपड़े में आग लगाती हो? तुम्हें मालूम है, तुम मुझे किधर खींचे लिये जाती हो? ये बातें कल तुम्हें भूल जायँगी। किसी राजा रईस से तुम्हारा विवाह हो जायगा, फिर मुझे भूलकर भी न याद करोगी। देखने पर शायद पहचान भी न सको। मेरे हृदय में क्यों अपने खेल के घरौंदे बना रही हो? तुम्हारे लिए जो खेल है, वह मेरे लिए मौत है! मैं जानता हूँ, यह तुम्हारी बालक्रीड़ा है; लेकिन मेरे लिए वह बाग की चिनगारी है। तुम्हारी