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पृष्ठ:कायाकल्प.djvu/१६५

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कायाकल्प]
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मुन्शी––अच्छा, तो कल आना, और दो-चार थान ऊँचे दामों के कपड़े भी लेते आना। याद रखना, विदेशी चीज न हो, नहीं तो फटकार पड़ेगी। सच्चा देशी माल हो। विदेशी चीजों के नाम से चिढ़ती हैं।

बजाज चला गया, तो मुन्शीजी झिनकू से बोले––देखा, बात करने की तमीज नहीं और चले हैं सौदा बेचने।

झिनकू––भैया, भिड़ा देना बेचारे को। जो उसकी तकदीर में होगा, वह मिल ही जायगा। सेंतमेत में जस मिले, तो लेने मे क्या हरज है।

मुन्शी––अच्छा, जरा ठेका सँभालो, कुछ भगवान् का भजन हो जाय। यह बनिया न-जाने कहाँ से कूद पड़ा।

यह कहकर मुन्शीजी ने मीरा का यह पद गाना शुरू किया––

राम की दिवानी, मेरा दरद न जानै कोइ।
घायल की गति घायल जाने, जो कोई घायल होइ;
शेषनाग पै सेज पिया को, केहि विधि मिलनो हाइ।

राम की दिवानी. . . .


दरद की मारी बन-बन डोलू, वैद मिला नहीं कोइ;
'मीरा' की पीर प्रभु कैसे मिटेगी, वैद सॅवलिया होइ।

राम की दिवानी. . . .

झिनकू––वाह भैया, वाह! चोला मस्त कर दिया। तुम्हारा गला तो दिन दिन निखरता जाता है।

मुन्शी––गाना ऐसा होना चाहिए कि दिल पर असर पड़े। यही नहीं कि तुम तो 'तूम-ताना' का तार बाँध दो और सुननेवाले तुम्हारा मुँह ताकते रहें। जिस गाने ते मन में भक्ति, वैराग्य, प्रेम और आनन्द की तरंगे न उठे, वह गाना नही है।

झिनकू––अच्छा, अब की मैं भी कोई ऐसी ही चीज सुनाता हूँ; मगर मजा जब है कि हारमोनियम तुम्हारे हाथ में हो।

मुन्शीजी सितार, सारगी, सरोद, इसराज सब कुछ बजा लेते थे; पर हारमोनियम पर तो कमाल ही करते थे । हारमोनियम मे सितार की गतों को बजाना उन्हीं का कान

था । बाजा लेकर बैठ गये और झिनकू ने मधुर स्वरों से यह असावरी गाना शुरू की––

बसी जिय में तिरछी मुसकान।
कल न परत घहि, पल, छिन, निसि दिन रहत उन्हीं का ध्यान
भृकुटी धनु सो देख सखी री, नयना बान समान।

झिनकू संगीत का प्राचार्य था, जाति का कथक, अच्छे-अच्छे उस्तादों को आँखे देखे हुए, आवाज इस बुढ़ापे में भी ऐसी रसीली कि दिल पर चोट करे, इस पर उनका भाव बताना, जो कथकों को खास सिफत है, और भी गजब ढाता था, लेकिन मुन्शी बज्रधर की अब राज दरबार में रसाई हो गयी थी, उन्हें अब झिनकू को शिक्षा देने का