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पृष्ठ:कायाकल्प.djvu/१७५

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कायाकल्प]
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दिया। कुछ देर तक तो बेचारे खाँसी को दबाते रहे; लेकिा नैसर्गिक क्रियाओं को कौन रोक सकता है? खाँसी दबकर उत्तरोत्तर प्रचण्ड होती जाती थी, यहाँ तक कि अन्त में वह वह निकल ही पढ़ी-कुछ छींक थी, कुछ खाँसी और कुछ इन दोनों का सम्मिश्रण, मानो कोई बन्दर गुर्रा रहा हो। मनोरमा ने चौंककर ऑखें उठायीं, तो देखा कि राजा साहब बैठे हुए उसकी ओर प्रेम विह्वल नेत्रों से ताक रहे हैं। बोली––क्षमा कीजियेगा, मुझे आपको आहट ही न मिली। क्या आप देर से बैठे हैं?

राजा––नही तो, अभी-अभी आया हूँ। तुम लिख रही थीं। मैंने छेड़ना उचित न समझा।

मनोरमा––आपकी खॉसी बढ़ती हो जाती है, और आप इसकी कुछ दवा नहीं करते। राजा––आप ही आप अच्छी हो जायगी। बाबू चक्रधर तो १० बजे की डाक से आ रहे हैं न? उनके स्वागत की तैयारियां पूरी हो गयीं?

मनोरमा––जी हाँ, बहुत कुछ पूरी हो गयी है।

राजा––मैं चाहता हूँ, जुलूस इतनी धूमधाम से निकले कि कम-से-कम इस शहर के इतिहास में अमर हो जाय।

मनोरमा––यही तो मैं भी चाहती हूँ।

राजा––मैं सैनिकों के आगे फौजी वर्दी में रहना चाहता हूँ।

मनोरमा ने चिन्तित होकर कहा––आपका जाना उचित नहीं जान पड़ता। आप यहीं उनका स्वागत कीजियेगा। अपनी मर्यादा का निर्वाह तो करना ही पड़ेगा। सरकार यों भी हम लोगों पर सन्देह करती है, तब तो वह सत्त बाँधकर हमारे पीछे पड़ जायगी।

राजा––कोई चिन्ता नहीं। संसार में सभी प्राणी राजा ही तो नहीं हैं। शान्ति राज्य में नहीं, सन्तोष में है। अवश्य चलूँगा, अगर रियासत ऐसे महात्माओं के दर्शन में बाधक होती है, तो उससे इस्तीफा दे देना ही अच्छा।

मनोरमा ने राजा की ओर बड़ी करुण दृष्टि से देखकर कहा––यह ठीक है; लेकिन जब मैं जा रही हूँ, तो आपके जाने की जरूरत नहीं।

राजा––खैर न जाऊँगा; लेकिन यहाँ मैं अपनी जवान को न रोगा। उनके गुजारे की भी तो कुछ फिक्र करनी होगी।

मनोरमा––मुझे भय है कि वह कुछ लेना स्वीकार न करेंगे। बड़े त्यागी पुरुष है।

राजा––यह तो मैं जानता हूँ। उनके त्याग का क्या कहना! चाहते तो अच्छी नौकरी करके आराम से रहते; पर दूसरों के उपकार के लिए प्राणों को हवेली पर-लिये रहते हैं। उन्हें धन्य है! लेकिन उनका किसी तरह गुजर-बसर तो होना ही चाहिए। तुम्हें संकोच होता हो, तो मैं कह दूँ।

मनोरमा––नहीं, आप न कहिएगा, मैं ही कहूँगी। मान लें, तो है।

राजा––मेरी और उनकी तो बहुत पुरानी मुलाकात है। मैं भी उनकी समिति का मेम्बर था। अब फिर नाम लिखाऊँगा। कितने रुपए तुम्हारे विचार में काफी होंगे? रकम ऐसी होनी चाहिए, जिसमें उन्हें किसी प्रकार का कष्ट न होने पाये।