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पृष्ठ:कायाकल्प.djvu/१९०

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कायाकल्प]
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ख्वाज़ा––इसी घर में। सुबह से कई बार कह चुका हूँ कि चल तुझे तेरे घर पहुँचा आऊँ, जाती ही नहीं। बस, बैठी रो रही है।

चक्रधर का हृदय भय से काँप उठा। अहल्या पर अवश्य ही हत्या का अभियोग चलाया जायगा और न जाने क्या फैसला हो। चिन्तित स्वर से पूछा––अहल्या पर तो अदालत में ·

ख्वाजा––हरगिज नहीं। उसने हर एक लड़की के लिए नमूना पेश कर दिया। खुदा और रसूल दोनों उसे दुआ दे रहे हैं। फरिश्ते उसके कदमों का बोसा ले रहे हैं। उसने खून नहीं किया, कल्ल नहीं किया, अपनी असमत की हिफाजत की, जो उसका फर्ज था। यह खुदाई कहर था, जो छुरी बनकर इसके सीने में चुभा। मुझे जरा भी मलाल नहीं है। खुदा की मरनी में इन्सान को क्या दखल? लाश उठायी गयी। शोक समाज पीछे-पीछे चला। चक्रधर भी ख्वाजा साहब के साथ कब्रिस्तान तक गये। रास्ते में किसी ने बातचीत न की। जिस वक्त लाश में उतारी गयी, ख्वाज़ा साहब रो पड़े। हाथों से मिट्टी दे रहे थे और आँखों से आँसू की बूँद मरनेवाले को लाश पर गिर रही थीं। यह क्षमा के आँसू थे। पिता ने पुत्र को क्षमा कर दिया था। चक्रधर भी आँसुओ को न रोक सके। आह! इस देवता-स्वरूप मनुष्य पर इतनी घोर विपत्ति!

दोपहर होते-होते लोग घर लौटे। ख्वाजा साहब जरा दम लेकर बोले––आओ बेटा, तुम्हें अहल्या के पास ले चलूँ। उसे जरा तस्कीन दो, मैंने जिस दिन से उसे भाभी को सौंपा, यह अहद किया था कि इसकी शादी मैं करूँगा। मुझे मौका दो कि अपना अहद पूरा करूँ।

यह कहकर ख्वाज़ा साहब ने चक्रधर का हाथ पकड़ लिया और अन्दर चले। चकधर का हृदय बॉसों उछल रहा था। अहल्या के दर्शनों के लिए वह इतने उत्सुक कभी न थे। उन्हें ऐसा अनुमान हो रहा था कि अब उसके मुख पर माधुर्य की जगह तेजस्विता का आभास होगा, कोमल नेत्र कठोर हो गये होंगे, मगर जब उस पर निगाह पड़ी, तो देखा वही सरल, मधुर छवि थी, वही करुण-कोमल नेत्र, वही शीतल-मधुर वाणी। वह एक खिड़की के सामने खड़ी बगीचे की ओर ताक रही थी। सहसा चक्रधर को देखकर वह चौक पड़ी और घूँघट में मुंह छिपा लिया। फिर एक ही क्षण के बाद वह उनके पैरों को पकड़कर अश्रुधारों से धोने लगी। उन चरणों पर सिर रखे हुए स्वर्गीय सांत्वना, एक देवी शक्ति, एक धैर्यमय तृप्ति का अनुभव हो रहा था।

चक्रधर ने कहा––अहल्या, तुमने जिस वीरता से आत्मरक्षा की, उसके लिए तुम्हें बधाई देता हूँ। तुमने वीर क्षत्राणियों की कीर्ति को उज्ज्वल कर दिया। दुःख है, तो इतना ही कि ख्वाजा साहब का सर्वनाश हो गया।

अहल्याने उत्तर न दिया। चक्रधर के चरणों पर सिर झुकाये बैठी रही। चक्रधर फिर बोले–– मुझे लज्जित न करो, अहल्या! मुझे तुम्हारे चरणों पर सिर झुकाना चाहिए,