पृष्ठ:कायाकल्प.djvu/२४६

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
कायाकल्प]
२६१
 

की लङ्का धूल में मिल जायगी। आखिर आपको यहाँ क्या कष्ट है?

चक्रधर को बार-बार एक ही बात का दुहराना बुरा मालूम होता था। कुछ झुँझलाकर बोले—इसी से तो मैं जाना चाहता हूँ कि यहाँ मुझे कोई कष्ट नहीं है। विलास में पड़कर अपना जीवन नष्ट नहीं करना चाहता।

राजा—और इस राज्य को कौन सँभालेगा?

चक्रधर—राज्य सँभालना मेरे जीवन का आदर्श नहीं है। फिर आप तो हैं ही।

राजा—तुम समझते हो, मैं बहुत दिन जीऊँगा? सुखी आदमी बहुत दिन नहीं जीता, बेटा। यह सब मेरे मरने के सामान हैं। मैं मिथ्या नहीं कहता। मुझे ऐसा आभास हो रहा है कि मेरे दिन निकट आ गये हैं। शंखधर मेरा शत्रु बनकर आया है। यह लो, वह तलवार लिये दौड़ा भी आ रहा है? क्यों शंखधर, तलवार क्यों लाये हो?

शंखधर—तुमको मालेंगे।

राजा—क्यों भाई, मैंने तुम्हारा क्या बिगाड़ा है?

शंखधर—अम्माँ लानी लोती हैं, तुमने उनको क्यों माला है?

राजा—लो साहब, यह नया अपराध मेरे सिर पर मढ़ा जा रहा है। चलो, जरा देखूँ तो, तुम्हारी लानी अम्माँ को किसने मारा है। क्या सचमुच रोती हैं?

शंखधर—बली देल छे लोती हैं।

राजा साहब तो तुरन्त अन्दर चले गये। मनोरमा के रोने की खबर सुनकर वह व्याकुल हो उठे। अन्दर जाकर देखा, तो मनोरमा सचमुच रो रही थी। कमल पुष्प में ओस की बूँदें झलक रही थीं।राजा साहब ने आतुर होकर पूछा—क्या बात है, नोरा! कैसा जी है?

मनोरमा ने आँसू पोंछते हुए कहा—अच्छी तो हूँ!

राजा—तो आँखें क्यों लाल हैं?

मनोरमा—आँखें तो लाल नहीं हैं। (जरा रुककर) अहल्यादेवी बाबूजी के साथ जा रही हैं। लल्लू को भी ले जायेंगी।

राजा—यह तुमसे किसने कहा।

मनोरमा—अहल्यादेवी ने।

राजा—अहल्या नहीं जा सकती।

मनोरमा—आप बाबूजी को क्यों नहीं समझाते?

राजा—वह मेरे समझाने से न मानेंगे। किसी के समझाने से न मानेंगे।

मनोरमा—तो फिर?

राजा—तो उन्हें जाने दो। यह बहुत दिन बाहर नहीं रहेंगे। उन्हें थोड़े ही दिनों में लौटकर आना पड़ेगा।

मनोरमा की आँखों से अश्रुधारा होने लगी। उसने अवरुद्ध कण्ठ से कहा—वह अब यहाँ न आयेंगे। आप उन्हें नहीं जानते?