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[कायाकल्प
 

इस वक्त ताँगा धीरे-धीरे ख्वाजा महमूद के मकान के सामने या पहुँचा। हजारों आदमियों का जमाव था। यद्यपि किसी के हाथ में लाठी या डण्डे न थे, पर उनके मुख जिहाद के जोश से तमतमाये हुए थे। यशोदानन्दन को देखते ही कई आदमी उनकी तरफ लपके, लेकिन जब उन्होंने जोर से कहा— तुमसे लड़ने नहीं आया हूँ। कहाँ हैं ख्वाजा महमूद? मुमकिन हो तो जरा उन्हें बुला लो, तो लोग हट गये?

जरा देर में एक लम्बा सा आदमी, गाढे़ को अचकन पहने, आकर खड़ा हो गया। भरा हुआ बदन था, लम्बी दाढ़ी, जिसके कुछ बाल खिचड़ी हो गये थे और गोरा रंग। मुख से शिष्टता झलक रही थी। यही ख्वाजा महमूद थे।

यशोदानन्दन ने त्योरियाँ बदलकर कहा—क्यों ख्वाजा साहब, आपको याद है, इस मुहल्ले में कभी कुरबानी हुई है?

महमूद—जी नहीं, जहाँ तक मेरा ख्याल है, यहाँ कभी कुरबानी नहीं हुई।

यशोदा॰—तो फिर आज आप यहाँ कुरबानी करने की नयी रम्म क्यों निकाल रहे हैं?

महमूद—इसलिए कि कुरबानी करना हमारा हक है। अब तक हम आपके जजबात का लिहाज करते थे, अपने माने हुए हक को भूल गये थे, लेकिन जब आप लोग अपने हकों के सामने हमारे जजबात की परवा नहीं करते, तो कोई वजह नहीं कि हम अपने हकों के सामने आपके जजबात की परवा करें। मुसलमानों को शुद्धि करने का आप को पूरा हक हासिल है, लेकिन कम-से कम पाँच सौ बरसों मे आपके यहाँ शुद्धि की कोई मिसाल नहीं मिलती। आप लोगों ने एक मुर्दा हक को जिन्दा किया है। इसीलिए न, कि मुसलमानों की ताकत और असर कम हो जाय। जब आप हमें जेर करने के लिए नये नये हथियार निकाल रहे हैं, तो हमारे लिए इसके सिवा और क्या चारा है कि अपने हथियारों को दूनी ताकत से चलायें।

यशोदा॰—इसके यह मानी है कि कल आप हमारे द्वारों पर, हमारे मन्दिरों के सामने, कुरबानी करें और हम चुपचाप देखा करें। आप यहाँ हरगिज कुरबानी नहीं कर सकते और करेंगे, तो इसकी जिम्मेदारी आपके सिर होगी।

यह कहकर यशोदानन्दन फिर ताँगे पर बैठे। दस-पाँच आदमियों ने ताँगे को रोकना चाहा, पर कोचवान ने घोड़ा तेज कर दिया। दम के दम ताँगा उड़ता हुया यशोदानन्दन के द्वार पर पहुँच गया, जहाँ हजारो आदमी खड़े थे। इन्हें देखते हो चारों तरफ हलचल मच गयी। लोगों ने चारों तरफ से आकर उन्हें घेर लिया। अभी तक फोज का अफसर न था, फौज दुविधे में पड़ी हुई थी, समझ में न आता था कि क्या करें। सेनापति के आते ही सिपाहियों में जान-सी पड़ गयी, जैसे सूखे धान मे पानी पड़ जाय।

यशोदानन्दन ताँगे से उतर पड़े और ललकारकर बोले—क्यों भाइयो, क्या विचार है? यहाँ कुरबानी होगी? आप जानते हैं, इस मुहल्ले में आज तक कभी कुर-