दूसरे दिन दीवान साहब को ज्वर हो आया। गुरुसेवक ने तापमान लगाकर देखा, तो ज्वर १०४ डिग्री का था। घबराकर डाक्टर को बुलाया। मनोरमा यह खबर पाते ही दौड़ी हुई आई। उसने आते-ही-आते गुरुसेवक से कहा—मैंने आपसे कल ही कहा था, जाकर लौंगी अम्माँ को बुला लाइए, लेकिन आप न गये। अब तक तो आप हरिद्वार से लौटते होते।
गुरुसेवक—मैं तो जाने को तैयार था लेकिन जब कोई जाने भी दे। दादाजी से पूछा, तो वह मुझको बेवकूफ बनाने लगे। मैं कैसे चला जाता?
मनोरमा—तुम्हें उनसे पूछने की क्या जरूरत थी? इनकी दशा देख नहीं रहे हो। अब भी मौका है। मैं इनकी देख माल करती रहूँगी, तुम इसी गाड़ी से चले जाओ और उसे साथ लाओ। वह इनकी बीमारी की खबर सुनकर एक क्षण भी न रुकेंगी। वह केवल तुम्हारे भय से नहीं आ रही है।
दीवान साहब मनोरमा को देखकर बोले—आओ नोरा, मुझे तो आज ज्वर आ गया। गुरुसेवक कह रहा था कि तुम लौंगी को बुलाने जा रही हो। बेटी, इसमें तुम्हारा अपमान है। उसको हजार दफा गरज हो आये, या न आये। भला तुम उसे बुलाने जाओगी, तो दुनिया क्या कहेगी? सोचो, कितनी बदनामी की बात है।
मनोरमा—दुनिया जो चाहे कहे, मैंने भैयाजी को भेज दिया है। वह तो स्टेशन पहुँच गये होंगे। शायद गाड़ी पर सवार भी हो गये हों।
हरिसेवक—सच! यह तुमने क्या किया? लौंगी कभी न आयेगी।
मनोरमा—आयेगी क्यों नहीं। न आयेगी, तो मैं जाऊँगी और उसे मना लाऊँगी।
हरिसेवक—तुम उसे मनाने जाओगी? रानी मनोरमा लौंगी कहारिन को मनाने जायेंगी?
मनोरमा—मनोरमा लौंगी कहारिन का दूध पीकर बड़ी न होती, तो आज रानी मनोरमा कैसे होती? हरिसेवक का मुरझाया हुआ चेहरा खिल उठा, बुझी हुई आँखें जगमगा उठीं, प्रसन्नमुख होकर बोले—नोरा, तुम सचमुच दया की देवी हो। देखो, अगर लौंगी आये और मैं न रहूँ, तो उसकी खबर लेती रहना। उसने मेरी बड़ी सेवा की है। मैं कभी उसके एहसानों का बदला नहीं चुका सकता। गुरुसेवक उसे सतायेगा, उसे घर से निकालेगा; लेकिन तुम उस दुखिया की रक्षा करना। मैं चाहूँ, तो अपनी सारी सम्पति उसके नाम लिख सकता हूँ। यह सब जायदाद मेरी पैदा की हुई है। मैं अपना सब कुछ लौंगी को दे सकता हूँ, लेकिन लौंगी कुछ न लेगी। वह दुष्टा मेरी जायदाद का एक पैसा भी न छुएगी। वह अपने गहने-पाते भी काम पड़ने पर इस घर में लगा देगी। बस, वह सम्मान चाहती है। कोई उससे आदर के साथ बोले और उसे लूट ले। वह घर की स्वामिनी बनकर भूखों मर जायगी, लेकिन दासी बनकर सोने का कौर भी न खायगी। यह उसका