सामग्री पर जाएँ

पृष्ठ:कायाकल्प.djvu/२६८

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ प्रमाणित है।
कायाकल्प]
२८३
 

पर अब उसका न था। यह घर उसी ने बनवाया था। उसने घर बनवाने पर जोर न दिया होता, तो ठाकुर साहब अभी तक किसी किराये के घर पड़े होते। घर का साग सामान उसी का खरीदा हुआ था, पर अब उसका कुछ न था। सब कुछ स्वामी के साथ चला गया। वैधव्य के शोक के साथ यह भाव कि मैं किसी दूसरे की रोटियों पर पड़ी हूँ,उसके लिए असह्य था। हालाँकि गुरुसेवक पहले से अब कहीं ज्यादा उसका लिहाज करते थे, और कोई ऐसी बात न होने देते थे, जिससे उसे रंज हो। फिर भी कभी-कभी ऐसी बातें हो ही जाती थीं, जो उसकी पराधीनता को याद दिला देती थीं। कोई नौकर अब उससे अपनी तलब माँगने न आता था; रियासत के कर्मचारी अब उसकी खुशामद करने न आते थे। गुरुसेवक और उसकी स्त्री के व्यवहार में तो किसी तरह की त्रुटि न थी। लौगी का उन लोगों से जैसी आशा थी, उससे कहीं अच्छा बर्ताव उसके साथ किया जाता था, लेकिन महरियाँ अब खड़ी जिसका मुँह जोहती है, वह कोई और ही है; नौकर जिसका हुक्म सुनते दौड़कर आते हैं, वह भी और ही कोई है। देहात के असामी नजराने या लगान के रुपए अब उसके हाथ में नहीं देते, शहर की दूकानों के किरायेदार भी अब उसे किराये देने नहीं आते। गुरुसेवक ने अपने मुंह से किसी से कुछ नहीं कहा है। प्रथा ओर रुचि ने आप ही आप सारा व्यवस्था उलट-पलट कर दी है। पर ये ही वे बातें हैं, जिनसे उसके आहत हृदय को ठेस लगती है, और उसकी मधुर स्मृतियों में एक क्षण के लिए ग्लानि की छाया आ पड़ती है। इसी लिए अब वह वहाँ से जाकर किसी देहात में रहना चाहती। आखिर जब ठाकुर साहब ने उसके नाम कुछ नहीं लिखा, उसे दूध की मक्खी की भाँति निकालकर फेंक दिया, तो वह यहाँ क्यों पड़ी दूसरों का मुँह जोहे? उसे अब एक टूटे फूटे झोपड़े और एक टुकड़े रोटी के सिवा और कुछ नहीं चाहिए। इसके लिए वह अपने हाथों से मेहनत कर सकती है। जहाँ रहेगी, वहीं अपने गुजर-भर को कमा लेगी। उसने जो कुछ किया, यह उसी का तो फल है। वह अपनी झोपड़ी में पड़ी रहती, तो आज क्यों यह अनादर और अपमान होता? झोपड़ी छोड़कर महल के सुख भोगने का ही यह दण्ड है।

गुरुसेवक ने कहा—आखिर सुनें तो, कहाँ जाने का विचार कर रही हो?

लौंगी—जहाँ भगवान् ले जायँगे, वहाँ चली जाऊँगी; कोई नैहर या दूसरी ससुराल है, जिसका नाम बता दूँ?

गुरुसेवक—सोचती हो, तुम चली जाओगी तो मेरी कितनी बदनामी होगी? दुनिया यही कहेगी कि इनसे एक वेवा का पालन न हो सका। उसे घर से निकाल दिया। मेरे लिए कहीं मुँह दिखाने की भी जगह न रहेगी। तुम्हें इस घर में जो शिकायत हो वए मुझसे कहो; जिस बात की जरूरत हो, मुझसे बतला दो। अगर मेरी तरफ से उसमें जरा भी कोर-कसर देखो, तो फिर तुम्हें अख्तियार है, जो चाहे करना। यों मैं कभी न जाने दूँगा।

लौंगी—क्या बाँधकर रखोगे?