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[कायाकल्प
 

वागीश्वरी—उस विचार में क्या तेरी भोग लालसा न छिपी थी? खूब ध्यान करके सोच, तू इससे इन्कार नहीं कर सकती!

अहल्या ने लज्जित होकर कहा—हो सकता है, अम्माँजी, मैं इन्कार नहीं कर सकती।

वागीश्वरी—सम्पत्ति यहाँ भी तेरा पीछा करेगी, देख लेना।

अहल्या—अब तो उससे जी भर गया, अम्माँजी।

वागीश्वरी—जभी तो वह फिर तेरा पीछा करेगी। जो उससे भागता है, उसके पीछे दौड़ती है। मुझे शङ्का होती है कि कहीं तू फिर लोभ में न पड़ जाय। एक बार चूकी, तो १४ वर्ष रोना पड़ा, अबकी चूकी तो बाकी उम्र रोते ही गुजर जायगी।


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शंखधर को अपने पिता के साथ रहते एक महीना हो गया। न वह जाने का नाम लेता है, न चक्रधर ही जाने को कहते हैं। शंखधर इतना प्रसन्नचित्त रहता है, मानो अब उसके लिए ससार में कोई दुःख, कोई बाधा नहीं है। इतने ही दिनों में उसका रंग रूप कुछ और हो गया है। मुख पर यौवन का तेज झलकने लगा और जीर्ण शरीर भर आया है। मालूम होता है, कोई अखण्ड ब्रह्मचर्य-व्रतधारी ऋषिकुमार है।

चक्रधर को अब अपने हाथों कोई काम नहीं करना पड़ता। वह जब एक गाँव से दूसरे गाँव जाते हैं, तो उनका सामान शंखधर उठा लेता है, उन्हें अपना भोजन तैयार मिलता है, बर्तन मँजे हुए, साफ सुथरे। शङ्खधर कभी उन्हें अपनी धोती भी नहीं छाँटने देता। दोनों प्राणियों के जीवन का वह समय सबसे आनन्दमय होता है, जब एक प्रश्न करता और दूसरा उसका उत्तर देता है। शङ्खधर को बाबाजी की बातों से अगर तृप्ति नहीं होती, तो अल्प-भाषी बाबाजी को भी बातें करने से तृप्ति नहीं होती। वह अपने जीवन के सारे अनुभव, दर्शन, विज्ञान, धर्म, इतिहास की सारी बातें घोलकर पिला देना चाहते हैं। उन्हें इसकी परवाह नहीं होती कि शङ्खधर उन बातों को ग्रहण भी कर रहा है या नहीं, शिक्षा देने में वह इतने तल्लीन हो जाते हैं। जड़ी बूटियों का जितना ज्ञान उन्होंने बड़े-बड़े महात्माओं से बरसों में प्राप्त किया था, वह सब शङ्खधर को सिखा दिया। वह उसे कोई नयी बात बताने का अवसर खोजा करते हैं, उसकी एक-एक बात पर उनकी सूक्ष्म दृष्टि पड़ती रहती है। दूसरों से उसकी सज्जनता और सहन-शीलता का बखान सुनकर उन्हें कितना गर्व होता है! वह मारे आनन्द के गद्‌गद हो जाते हैं, उनकी आँखें सजल हो जाती हैं। सब जगह यह बात खुल गयी है कि यह युवक उनका पुत्र है। दोनों की सूरत इतनी मिलती है कि चक्रधर के इन्कार करने पर भी किसी को विश्वास नहीं आता। जो बात सब जानते हैं, उसे वह स्वयं नहीं जानते और न जानना ही चाहते हैं।

एक दिन वह एक गाँव में पहुँचे, तो वहाँ दंगल हो रहा था। शङ्खधर भी अखाड़े के पास जाकर खड़ा हो गया। एक पट्ठे ने शङ्खधर को ललकारा। वह शंखधर का