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पृष्ठ:कायाकल्प.djvu/३०७

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[कायाकल्प
 

सभी बातें स्पष्ट करके लिख दीं! अन्त में यह लिखा—आप आने में विलम्ब करेंगी, तो पछतायँगी। यह आशा छोड़ दीजिए कि मैं जगदीशपुर राज्य का स्वामी बनूँगा। पिताजी के चरणों की सेवा छोड़कर मैं राज्य सुख नहीं भोग सकता। यह निश्चय है। इन्हें यहाँ से ले जाना असम्भव है। इन्हें यदि मालूम हो जाय कि मैं इन्हें पहचानता हूँ, तो आज ही अन्तर्धान हो जायँ। मैंने इनको अपना परिचय दे दिया है, आप लोगों की बातें भी सुनाया करता हूँ; पर मुझे इनके मुख पर जरा भी आवेश का चिह्न नहीं दिखायी देता, भावों पर इन्होंने इतना अधिकार प्राप्त कर लिया है। आप जल्द से जल्द आवें।

वह सारी रात इस कल्पना में मग्न रहा कि अम्माँजी आ जायँगी, तो पिताजी को झुककर प्रणाम करूँगा और पूछूँगा—अब भागकर कहाँ जाइएगा? फिर हम दोनों इनका गला न छोड़ेंगे, मगर मन की सोची हुई बात कभी पूरी हुई है?



४७

एक महीना पूरा गुजर गया और न अहल्या ही आयी, न कोई दूसरा ही। शङ्खधर दिन-भर उसकी बाट जोहता रहता। रेल का स्टेशन वहाँ से पाँच मील पर था। रास्ता भी साफ था। फिर भी कोई नहीं आया। चक्रधर जब कहीं चले जाते, तो वह चुपके से स्टेशन की राह लेता और निराश लौट आता। आखिर एक महीने के बाद तीसरे दिन उसे एक पत्र मिला, जिसे पढ़कर उसके शोक की सीमा न रही। अहल्या ने लिखा था—मैं बड़ी अभागिनी हूँ। तुमने इतनी कठिन तपस्या करके जिस देवता के दर्शन कर पाये, उसके दर्शन करने की परम अभिलाषा होने पर भी मैं हिल नहीं सकती। एक महीने से बीमार हूँ, जीने की आशा नहीं। अगर तुम आ जाओ, तो तुम्हें देख लूँ, नहीं तो यह अभिलाषा भी साथ जायगी! मैं कई महीने हुए, आगरे में पड़ी हूँ। जी घबराया करता है। अगर किसी तरह स्वामीजी को ला सको, तो अन्त समय उनके चरणों के दर्शन भी कर लूँ। मैं जानती हूँ, वह न आयेंगे। व्यर्थ ही उनसे आग्रह न करना, मगर तुम आने में एक क्षण का भी बिलम्ब न करना।

शङ्खधर डाकखाने के सामने खड़ा देर तक रोता रहा। माताजी बीमार हैं। पुत्र और स्वामी के वियोग से ही उनकी यह दशा हुई है। क्या वह माता को इस दशा में छोड़कर एक क्षण भी यहाँ विलम्ब कर सकता है? उसने पाँच साल तक अपना कोई समाचार न लिखकर माता के साथ जो अन्याय किया था, उसी व्यथा से वह अधीर हो उठा।

उसका मुख उतरा हुआ देखकर चक्रधर ने पूछा—क्यों बेटा, आज उदास क्यों मालूम होते हो?

शङ्खधर—माता जी का पत्र आया है, वह बहुत बीमार हैं। मैं पिताजी को खोजने निकला था। वह तो न मिले, माताजी भी चलीं जा रही हैं। पिताजी इस समय मिल जाते, तो मैं उनसे अवश्य कहता