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पृष्ठ:कायाकल्प.djvu/३२०

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कायाकल्प ]
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यहाँ भी पर उतनी ही प्रसन्न थी, जितनी अपने महल में।

एक दिन गुरुसेनक मनोरमा से मिलने आये। राजा साहब की अप्रसन्नता का पहला चार उन्हीं पर हुआ था। वह दरबार से अलग कर दिये गये थे। वह अपनी जमींदारी की देख-भाल करते थे। अधिकार छीने जाने पर वह अधिकार के शत्रु हो गये थे। अब फिर वह किसानों का संगठन करने लगे थे, बेगार के विरुद्ध अब फिर उनको अावाज उठने लगी थी। मनोरमा पर ये सब अत्याचार देख-देखकर उनकी क्रोधाग्नि भढ़कनी रहती थी। जिस दिन उन्होंने सुना कि मनोरमा अपने महल से निकाल दी गयी है, उनके क्रोध का वारापार न रहा। उनकी सारी वृत्तियाँ इस अपमान का बदला लेने के लिए तिलमिला उठीं।

मनोरमा ने उनका तमतमाया हुअा चेहरा देखा, तो काँप उठी।

गुरुसेवक ने आते-ही-आते पूछा---तुमने महल क्यो छोड़ दिया?

मनोरमा---कोई किसी से जबरदस्ती मान फरा सकता है? मुझे वहीं कौन सा ऐसा बड़ा सुख था, जो महल को छोड़ने का दुःख होता? में यहाँ भी खुश हूँ।

गुरुसेवक---मै देख रहा हूँ, बुड्ढा दिन-दिन सठियाता जाता है। विवाह के पीछे अन्धा हो गया है।

मनोरमा---भैया, आप मेरे सामने ऐसे शब्द मुँह से न निकालें। आपके पैरों पढ़ती हूँ।

गुरसेवक---तुम शब्दो को कहती हो, मैं इनकी मरम्मत करने की फिक्र मे हूँ। जरा विवाह का मजा चख लें।

मनोरमा ने त्योरियाँ बदलकर कहा---भैया, मैं फिर कहती हूँ कि आप मेरे सामने ऐसी बातें न करें। मुझे उनसे कोई शिकायत नहीं है। वह इस समय अपने होश में नहीं हैं। यही क्या, कोई आदमी शोक के ऐसे निर्दय आघात सहकर अपने होश में नही रह सकता। मै या आप उनके मन के भावों का अनुमान नहीं कर सकते। जिस प्राणी ने चालीस वर्ष तक एक अभिलापा को हृदय में पाला हो, उसी एक अभिलाषा के लिए उचित अनुचित, सब कुछ किया हो और चालीस वर्ष के बाद जब उस अभिलाषा के पूरे होने के सब सामान हो गये हों, एकाएक उसके गले पर छुरी चल जाय, तो सोचिए कि उस प्राणी की क्या दशा होगो? राजा साहब ने सिर पटककर प्राण नहीं दे दिये, यही क्या कम है। कम से कम में तो इतना धैर्य न रख सकती। मुझे इस बात का दुःख है कि उनके साथ मुझे जितनी सहानुभूति होनी चाहिए, मैं नहीं कर रही हूँ।

गुरुसेवक ने गम्भीर भाव से कहा---अच्छा, प्रजा पर इतना जुल्म क्यो हो रहा है? यह भी बेहोशी है?

मनोरमा---वेहोशी नहीं तो और क्या है? जो आदमी ६५ वर्ष की उम्र में सन्तान के लिए विवाह करे, वह बेहोश ही है। चाहे उसमें वेदोशी का कोई लक्षण न भी दिखायी दे।

गुरसेवक लजित और निराश होकर यहाँ से चलने लगे, तो मनोरमा खड़ी हो