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[कायाकल्प
 

प्रवाह में राजा साहब की सन्तान लालसा भी विलीन हो गयी थी। वही मनोरमा अब दूध की मक्खी बनी हुई थी। राजा साहब को उसकी सूरत से घृणा हो गयी थी। मनोरमा के लिए अब यह घर नरक तुल्य था। चुपचाप सारी विपत्ति सहती थी। उसे बड़ी इच्छा होती थी कि एक बार राजा साहब के पास जाकर पूछूँ, मुझसे क्या अपराध हुआ है, पर राजा साहब उसे इसका अवसर ही न देते थे। उनके मन में एक धारणा बैठ गयी थी और किसी तरह न हटती थी। उन्हे विश्वास था कि मनोरमा ही ने रोहिणी को विष देकर मार डाला। इसका कोई प्रमाण हो या न हो, पर यह बात उनके मन में बैठ गयी थी। इस हत्यारिनी से वह कैसे बोलते?

मनोरमा को आये दिन कोई न कोई अपमान सहना पड़ता था। उसका गर्व चूर करने के लिए रोज कोई न कोई षड्यन्त्र रचा जाता था। पर यह उद्दण्ड प्रकृतिवाली मनोरमा अब धैर्य और शान्ति का अथाह सागर है, जिसमें वायु के हलके हलके झोंकों से कोई आन्दोलन नहीं होता। वह मुस्कराकर सब कुछ शिरोधार्य करती जाती है। यह विकट मुस्कान उसका साथ कभी नहीं छोड़ती। इस मुस्कान में कितनी वेदना, विडम्बनाओं की कितनी अवहेलना छिपी हुई है, इसे कौन जानता है? वह मुस्कान नहीं, 'वह भी देखा, यह भी देखा' वाली कहावत का यथार्थ रूप है। नयी रानी साहब के लिए सुन्दर भवन बनवाया जा रहा था। उसकी सजावट के लिए एक बड़े आईने की जरूरत थी। शायद बाजार में उतना बड़ा आईना न मिल सका। हुक्म हुआ—छोटी रानी के दीवानखाने का बड़ा आईना उतार लाओ। मनोरमा ने यह हुक्म सुना और मुस्करा दी। फिर कालीन की जरूरत पड़ी। फिर वही हुक्म हुआ—छोटी रानी के दीवानखाने से लाओ। मनोरमा ने मुस्कराकर सारी कालीनें दे दी। इसके कुछ दिनों बाद हुक्म हुआ—छोटी रानी की मोटर नये भवन में लायी जाय। मनोरमा इस मोटर को बहुत पसन्द करती थी, उसे खुद चलाती थी। यह हुक्म सुना, तो मुस्करा दिया। मोटर चली गयी।

मनोरमा के पास पहले बहुत सी सेविकाएँ थीं। इधर घटते घटते उनकी संख्या तीन तक पहुँच गयीं थी। एक दिन हुक्म हुआ कि तीन सेविकाओं में से दो नये महल में नियुक्त की जायँ। उसके एक सप्ताह बाद वह एक भी बुला ली गयी। मनोरमा के यहाँ अब कोई सेविका न रही। इस हुक्म का भी मनोरमा ने मुस्कराकर स्वागत किया।

मगर अभी सबसे कठोर आघात बाकी था। नयी रानी के लिए तो नया महल बन ही रहा था। उनकी माताजी के लिए एक दूसरे मकान की जरूरत पड़ी। माताजी को अपनी पुत्री का वियोग असह्य था। राजा साहब ने नये महल में उनका निवास उचित न समझा। माता के रहने से नयी रानी की स्वाधीनता में विघ्न पड़ेगा, इसलिए हुक्म हुआ कि छोटी रानी का महल खाली करा लिया जाय। रानी ने यह हुक्म सुना और मुस्करा दो। महल खाली करा दिया गया। जिस हिस्से में पहले महरियाँ रहती थी, उसी को उसने अपना निवास स्थान बना लिया। द्वार पर टाट के परदे लगवा दिये।