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पृष्ठ:कायाकल्प.djvu/३५०

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कायाकल्प]
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रानी पिंजरा लिये हुए चली आयी। रात-भर वही मैना उसके ध्यान में बसी रही। उसकी बातें कानों में गूँजती रहीं।

कौन कह सकता है, यह सकेत पाकर उसका मन कहाँ-कहाँ विचर रहा था। सारी रात वह मधुर स्मृतियों का सुखद स्वप्न देखने में मग्न रही। प्रातःकाल उसके मन में आया, चलकर देखूँँ, वह आदमी आया है या नहीं। वह भवन से निकली; पर फिर लौट गयी।

थोड़ी ही देर में फिर वही इच्छा हुई। वह आदमी कौन है, क्या यह बात उससे छिपी हुई थी? वह बाग के फाटक तक आयी; पर वहीं से लौट गयी। उसका हृदय हवा के पर लगाकर उस मनुष्य के पास पहुँच जाना चाहता था, पर आह! कैसे जाय?

चार बजे वह ऊपर के कमरे में जा बैठी और उस आदमी की राह देखने लगी। वहाँ से माली का मकान साफ दिखायी देता था। बैठे-बैठे बड़ी देर हो गयी। अँँधेरा होने लगा। रानी ने एक गहरी सॉस ली। शायद अब न आयेंगे।

सहसा उसने देखा, एक आदमी दो पिंजरे दोनों हाथो में लटकाये बाग में आया। मनोरमा का हृदय बाँसो उछलने लगा। सहस्त्र घोड़ों की शक्तिवाला इञ्जिन उसे उस आदमी की ओर खींचता हुआ जान पड़ा। वह बैठी न रह सकी। दोनों हाथों से हृदय को थामे, सॉस वन्द किये, मनोवेग से आन्दोलित वह खड़ी रही। उसने सोचा, माली अभी मुझे बुलाने आता होगा; पर माली न आया और वह आदमी वहीं पिंजरा रखकर चला गया। मनोरमा अब वहाँ न रह सकी। हाय! वह चले जा रहे हैं! तब वही जमीन पर लेटकर वह फफक-फफककर रोने लगी।

सहसा माली ने आकर कहा— सरकार, वह यादमी दो पिंजरे रख गया है और कह गया है कि फिर कभी और चिड़ियाँ लेकर आऊँगा।

मनोरमा ने कठोर स्वर मे पूछा— तूने मुझमे उस वक्त क्यों नहीं कहा?

माली पिनरे को उसके सामने जमीन पर रखता हुआ बोला— सरकार मैं उसी वक्त आ रहा था पर उसी आदमी ने मना किया। कहने लगा, अभी सरकार को क्यों बुलाओगे? मैं फिर कभी और चिड़ियाँ लाकर उनसे आप ही मिलूँँगा।

रानी कुछ न बोली। पिंजरे में बन्द दोनों चिड़ियों को सजल नेत्रो से देखने लगी।

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