जड़ा हुआ एक चित्र दीवार से लटका हुआ है, जिसमें दीवान हरिसेवक के मुँह से निकले हुए ये शब्द अंकित हुए हैं—
'लौंगी को देखो!'
आज से कई साल पहले, जब राजा साहब जीवित थे, मनोरमा को उसके पिता ने यही अन्तिम उपदेश दिया था। उसी दिन से यह उपदेश उसका जीवन मन्त्र बना हुआ है।
चक्रधर बहुत दिन घर पर न रहे। माता-पिता के बाद वह घर, घर ही न रहा। फिर दक्षिण की ओर सिधारे, लेकिन अब वह केवल सेवा-कार्य ही नहीं करते, उन्हें पक्षियों से बहुत प्रेम हो गया है। विचित्र पक्षियों को उन्हें नित्य खोज रहती है। भक्तजन उनका यह पक्षी-प्रेम देखकर उन्हें प्रसन्न करने के लिए नाना प्रकार के पक्षी लाते रहते हैं। इन पक्षियों के अलग-अलग नाम हैं। अलग अलग उनके भोजन की व्यवस्था हैं। उन्हें पढ़ाने, घुमाने व चुगाने का समय नियत है।
साँझ हो गयी थी। मनोरमा बाग में टहल रही थी। सहसा होज के पास एक बहुत ही सुन्दर पिंजरा दिखायी दिया। उसमें एक पहाड़ी मैना बैठी हुई थी। रानीजी को आश्चर्य हुआ। यहाँ पिजरा कहाँ से आया? उसके पास कई पहाड़ी चिड़ियाँ थीं, जिन्हें उसने सैकड़ों रुपये खर्च करके खरीदा था, पर ऐसी सुन्दर एक भी न थी। रंग पीला था, सिर पर लाल दाग था, चोंच इतनी प्यारी कि चूम लेने का जी चाहता था। मनोरमा समीप गयी, तो मैना बोली—नोरा! हमें भूल गयीं? तुम्हारा पुराना सेवक हूँ।'
मनोरमा के आश्चर्य का वारापार न रहा। उसे कुछ भय सा लगा। इसे मेरा नाम किसने पढ़ाया? किसकी चिड़िया है? यहाँ कैसे आयी? इसका स्वामी अवश्य कोई होगा। आता होगा, देखूँ, कौन है?
मनोरमा बड़ी देर तक खड़ी उस आदमी का इन्तजार करती रही। जब अब भी कोई न आया, तो उसने माली को बुलाकर पूछा—यह पिंजरा बाग में कौन लाया?
माली ने कहा—पहचानता तो नहीं हजूर, पर हैं कोई भले आदमी। मुझसे देर तक रियासत की बातें पूछते रहे। पिंजरा रखकर गये कि और चिड़ियाँ लेता आऊँ, पर लौटकर न आये।
रानी—आज फिर आयेंगे?
माली—हाँ हजूर कह तो गये हैं।
रानी—आयें तो मुझे खबर देना।
माली—बहुत अच्छा सरकार।
रानी—सूरत कैसी है, बता सकता है?
माली—बड़ी-बड़ी आँखे हैं हजूर, लम्बे आदमी हैं। एक एक बाल पक रहा है।