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पृष्ठ:कायाकल्प.djvu/३६

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कायाकल्प]
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गुजर बसर के लिए काफी होती । उसपर कुल-मर्यादा का पालन करना आवश्यक था। वह महारानी के पट्टीदार थे और इस हैसियत का निर्वाह करने के लिए उन्हें नौकर-चाकर, घोड़ा-गाड़ो, सभी कुछ रखना पड़ता था | अभी तक परम्परा को नकल होती चली आती थी। दशहरे के दिन उत्सव जरूर मनाया जाता, जन्माष्टमी के दिन जरूर धूमधाम होती।

प्रातःकाल था, माघ की ठण्ड पड़ रही थी। मुन्शीजी ने गरम पानी से स्नान किया और चौकी से उतरे। मगर खड़ाऊँ उलटे रखे हुए थे । कहार खडा था कि यह जायँ,तो धोती छाट! मुन्शीजी ने उलटे खड़ाऊँ देखे, तो कहार को डॉटा-तुझसे कितनी बार कह चुका कि खड़ाऊँ सीधे रखा कर | तुझे याद क्यों नहीं रहता ? बना, उलटे खड़ाऊँ पर कैसे पैर रखूँ ? आज तो मैं छोड़ देता हूँ, लेकिन कन जो तूने उलटे खड़ाऊँ रखे, तो इतना पीटगा कि तू भी याद करेगा।

कार ने कॉपते हुए हाथों से खडाऊँ सीधे कर दिये।

निर्मला ने हलवा बना रखा था । मुन्शीजी पाकर एक कुरसी पर बैठ गये और जलता हुअा हलवा मुंह में डाल लिया बारे किसी तरह उसे निगल गये और आँखों से पानी पोंछते हुए ब'ले-तुम्हारा कोई काम ठीक नहीं होता | जलता हुया हलवा सामने रख दिया । आखिर मेरा मुँह जलाने से तुम्हें कुछ मिल तो नहीं गया ।

निर्मला-जरा हाथ से देख क्यो न लिया ?

वज्रधर - वाह, उलटा चोर कोतवालै बाटे | मुझीको उल्लू बनाती हो । तुम्हें खुद सोच लेना चाहिए था कि जलता हुया हलमा खा गये, तो मुंह की क्या दशा होगी। लेकिन तुम्हें क्या परवा | लल्लू कहाँ हैं ?

निर्मला- लल्लू मुझसे कहके कही जाते हैं ? पहर रात रहे, न जाने किधर चले गये । नाने कहीं किसानों की सभा होनेवाली है। वहीं गये हैं ।

वनधर-वहाँ दिन-भर भूखा मरेगा ! न जाने इसके सिर से यह भूत कत्र उतरेगा? मुझसे कल दारोगाजी कहते थे, श्राप लड़के को सॅभालिए, नहीं तो धोखा खाइएगा। समझ में नहीं याar, क्या करूँ । मेरे इलाके के ग्रादमी भी इन सभागों मे अब जाने लगे हैं और मुझे खौफ हो रहा है कि कहीं रानी साहब के कानो में भनक पड़ गयी, तो मेरे सिर हो जायेंगी। मैं यह तो मानता है कि अहलकार लोग गरीबों को बहुत सताते हैं, मगर किया क्या जाय, सताये बगैर काम भी तो नहीं चलता। आखिर उनका गुजर बसर कैसे हो ! पिसानो को समझाना बुरा नहीं, लेकिन ग्राग मे कुदना तो बुरी बात है । मेरो तो मुनने को उसने कसम खा ली है, मगर तुम क्यों नहीं समझाती ?

निर्मला-जो याग में कृदेगा, आप जलेगा, मुझे क्या करना है । उससे बहस कौन करे । आज सवेरे-सवेरे कहाँ जा रहे हो ?

वनधर-जरा ठाकुर विशालसिंह के यहाँ जाता हूँ।

निर्मला-टोपहर तक तो लौट अायोगे न ?