यशोदा-हाँ, मालूम तो होता है। इन मूर्खों को कोई कैसे समझाये कि यहाँ बच्चों को लाने का काम नहीं। चलो, देखें।
दोनों ने उधर जाकर देखा, तो एक बालिका नाली में पड़ी रो रही है। गोरा रङ्ग था, भरा हुआ शरीर, बड़ी बड़ी आँखें, गोरा मुखड़ा, सिर से पाँव तक गहनों से लदी हुई। किसी अच्छे घर की लड़की थी। रोते-रोते उसकी आँखें लाल हो गयी थीं। इन दोनों युवकों को देखकर डरी और चिल्लाकर रो पड़ी। यशोदा ने उसे गोद में उठा लिया और प्यार करके बोले-बेटी, रो मत, हम तुझे तेरी अम्मा के घर पहुँचा देंगे। तुझी को खोज रहे थे। तेरे बाप का क्या नाम है?
लड़की चुप तो हो गयी, पर संशय की दृष्टि से देख देख सिसक रही थी। इस प्रश्न का कोई उत्तर न दे सकी।
यशोदा ने फिर चुमकारकर पूछा---बेटी, तेरा घर कहाँ है?
लड़की ने कोई जवाब न दिया।
यशोदा---अब बताओ महमूद, क्या करें?
महमूद एक अमीर मुसलमान का लड़का था। यशोदानन्दन से उसकी बड़ी दोस्ती थी। उनके साथ यह भी सेवासमिति में दाखिल हो गया था। बोला-क्या बताऊँ? कैंप में ले चलो, शायद कुछ पता चले।
यशोदा---अभागे जरा-जरा से बच्चों को लाते हैं और इतना भी नहीं करते कि उन्हें अपना नाम और पता तो याद करा दें।
महमूद---क्यों बिटिया, तुम्हारे बाबूजी का क्या नाम है?
लड़की ने धीरे से कहा---बाबूजी!
महमूद---तुम्हारा घर इसी शहर में है या कहीं और?
लड़की---मैं तो बाबूदी के साथ लेल पर आई थी!
महमूद---तुम्हारे बाबूदी क्या करते हैं?
लड़की---कुछ नहीं कलते।
यशोदा---इस वक्त अगर इसका बाप मिल जाय, तो सच कहता हूँ, बिना मारे न छोडूँ! बचा गहने पहनाकर लाये थे, जाने कोई तमाशा देखने आये हों।
महमूद---और मेरा जी चाहता है कि तुम्हें पीटूँ। मियाँ बीवी यहाँ आये तो बच्चे को किस पर छोड़ आते? घर में और कोई न हो तो?
यशोदा---तो फिर उन्हीं को यहाँ आने की क्या जरूरत थी।
महमूद---तुम atheist ( नास्तिक ) हो, तुम क्या जानो कि सच्चा मजहबी जोश किसे कहते हैं?
यशोदा---ऐसे मजहबी जोश को दूर से ही सलाम करता हूँ। इस वक्त दोनों मियाँ-बीवी हाय हाय कर रहे होंगे।
महमूद---कौन जाने, वे भी यहीं कुचल कुचला गये हों।