पृष्ठ:कायाकल्प.djvu/६

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‌कायाकल्प]
 


लड़की ने साहस कर कहा---तुम हमें घल पहुँचा दोगे? बाबूदी तुमको पैछा देंगे।

यशोदा---अच्छा बेटी, चलो तुम्हारे बाबूदी को खोजें।

दोनों मित्र बालिका को लिये हुए कैम्प में आये; पर यहाँ कुछ पता न चला। तब दोनों उस तरफ गये जहाँ मैदान में बहुत से यात्री पड़े हुए थे। महमूद ने बालिका को कन्धे पर बैठा लिया और यशोदानन्दन चारों तरफ चिल्लाते फिरे---यह किसकी लड़की है? किसी की लड़की तो नहीं खो गयी? यह आवाजें सुनकर कितने ही यात्री 'हाँ-हाँ, कहाँ-कहाँ' करके दौड़े; पर लड़की को देखकर निराश लौट गये।

चिराग जले तक दोनों मित्र घूमते रहे। नीचे-ऊपर, किले के आस-पास, रेल के स्टेशन पर, अलोपी देवी के मन्दिर की तरफ यात्री-ही-यात्री पड़े हुए थे; पर बालिका के माता-पिता का कहीं पता न चला। आखिर निराश होकर दोनों आदमी कैम्प लौट आये।

दूसरे दिन समिति के और कई सेवकों ने फिर पता लगाना शुरू किया। दिन भर दौड़े, सारा प्रयाग छान मारा, सभी धर्मशालाओं की खाक छानी; पर कहीं पता न चला।

तीसरे दिन समाचार-पत्रो में नोटिस दिया गया और दो दिन वहाँ और रहकर समिति आगरे लौट गयी। लड़की को भी अपने साथ लेती गयी। उसे आशा थी कि समाचार-पत्रों से शायद सफलता हो। जब समाचार-पत्रों से कुछ पता न चला तब विवश होकर कार्यकर्ताओं ने उसे वहाँ के अनाथालय में रख दिया। महाशय यशोदानन्दन ही उस अनाथालय के मैनेजर थे।


बनारस में महात्मा कबीर के चौरे के निकट मुंशी वज्रधरसिंह का मकान है। आप हैं तो राजपूत, पर अपने को 'मुंशी' लिखते और कहते हैं। 'मुन्शी' की उपाधि से आपको बहुत प्रेम है। 'ठाकुर' के साथ आपको गँवारपन का बोध होता है, इसलिए हम भी आपको मुन्शीजी कहेंगे। आप कई साल से सरकारी पेंशन पाते हैं। बहुत छोटे पद से तरक्की करते करते आपने अन्त मे तहसीलदारी का उच्च पद प्राप्त कर लिया था। यद्यपि आप उस महान् पद पर तीन मास से अधिक न रहे और उतने दिन भी केवल एवज पर रहे; पर आप अपने को 'साबिक तहसीलदार' लिखते थे और मुहल्लेवाले भी उन्हें खुश करने को 'तहसीलदार साहब' ही कहते थे। यह नाम सुनकर आप खुशी से अकड़ जाते है पर पेंशन केवल २५) मिलती थी; इसलिए तहसीलदार साहब को बाजार-हाट खुद ही करना पड़ता था। घर मे चार प्राणियों का खर्च था। एक लड़की थी, एक लड़का और स्त्री। लड़के का नाम चक्रधर था। वह इतना जहीन था कि पिता के पेन्शन के जमाने मे जब घर से किसी प्रकार की सहायता न मिल सकती थी, केवल अपने बुद्धि-बल से उसने एम० ए० की उपाधि प्राप्त कर ली थी। मुन्शीजीने पहले ही से सिफारिश पहुँचानी शुरू की थी। दरबारदारी की