सामग्री पर जाएँ

पृष्ठ:कायाकल्प.djvu/५१

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
५६
[कायाकल्प
 

सिर झुकाने से क्या होगा? पुरुष समझेगा, यह कुछ जानती ही नहीं। अच्छा, समझ ले कि तू पुरुष है; देख, मैं तेरी ओर कैसे ताकती हूँ। सिर उठाकर मेरी ओर देख। कहती हूँ सिर उठा, नहीं तो मैं चुटकी काट लूँगी। हाँ, इस तरह।

यह कहकर रानी ने मनोरमा को भृकुटि-विलास और लोचन कटाक्ष का ऐसा कौशल दिखाया कि मनोरमा का अज्ञान मन भी एक क्षण के लिए चंचल हो उठा। कटाक्ष में कितनी उत्तेजक शक्ति है, इसका कुछ अनुमान हो गया।

रानी—तुझे कुछ मालूम हुआ?

मनोरमा—मुझे तो तीर-सा लगा। आप मोहिनी-मन्त्र जानती होंगी।

रानी—तू युवक होती, तो इस समय छाती पर हाथ धरे आहतों की भाँति खड़ी होती, यह तो कटाक्ष हुआ। आ, अब तुझे बताऊँ कि आँखों से प्रेम की बातें कैसे की जाती हैं। मेरी ओर देख।

यह कहते-कहते रानी को फिर शिथिलता का अनुभव हुआ। 'सुधाबिन्दु' का प्रकाश मन्द होने लगा। विकल होकर पूछा—क्यों री, देख तो मेरा मुख कुछ उतरा जाता है।

मनोरमा ने चौंककर कहा—आपको यह क्या हो गया? मुख बिलकुल पीला पड़ गया है। क्या आप बीमार हैं?

रानी—हाँ बेटी, बीमार हूँ। राजकुमार अब भी नही आये? तू जाकर गुजराती से 'सुधाबिन्दु' की शीशी और प्याला माँग ला। जल्द आना, नही तो मै गिर पड़ूँगी!

मनोरमा दवा लाने गयी, तो राजकुमार इन्द्रविक्रमसिंह को मोटर से उतरते देखा। कोई ३० वर्ष की अवस्था थी। मुख से संयम, तेज और संकल्प झलक रहा था। ऊँचा कद था, गोरा रंग, चौड़ी छाती ऊँचा मस्तक, आँखों में इतनी चमक और तेजी थी कि हृदय में चुभ जाती थी। वह केवल एक पीले रंग का रेशमी कुरता पहने हुए थे और गले में एक सफेद चादर डाल ली थी। मनोरमा ने किसी देव-ऋषि का एक चित्र देखा था। मालूम होता था, इन्हीं को देखकर वह चित्र खींचा गया था।

उनके मोटर से उतरते ही चपरासी ने सलाम किया और लाकर दीवानखाने में बैठा दिया। इधर मनोरमा ने गुजराती से शीशी ली और जाकर रानी से यह समाचार कहा। रानी चबूतरे पर लेटी हुई थीं। सुनते ही उठ बैठीं और मनोरमा के हाथ से शीशी ले, प्याली में बिना गिने कई बूँद निकाल, पी गयी।

दवा ने जाते ही अपना असर दिखाया। रानी के मुख मण्डल पर फिर वही मनोरम छवि, अंगों में फिर वही चपलता, वाणी में फिर वही सरसता, आँखों में फिर वही मधुर हास्य, कपोलों पर वही अरुण ज्योति शोभा देने लगी। वह उठकर झूले पर जा बैठीं। झूला धीरे धीरे झूलने लगा। रानी का अञ्चल हवा से उड़ने लगा और केश बिखर गये। यही मोहिनी छवि वह राजकुमार को दिखाना चाहती थीं।

एक क्षण में राजकुमार ने झूले-घर में प्रवेश किया। रानी झूले से उतरना ही चाहती थीं कि वह उनके पास आ गये और बोले—क्या मधुर कल्पना स्वप्न साम्राज्य में बिहार कर रही हैं?