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कायाकल्प]
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महात्मा—मेरा यान आकाश में जितनी ऊँचाई तक पहुँच सकता है, उसकी यूरप वाले कल्पना भी नहीं कर सकते। मुझे विश्वास है कि शीघ्र ही मेरी चन्द्रलोक की यात्रा सफल होगी। यूरप के वैज्ञानिकों की तैयारियाँ देख-देखकर मुझे हँसी आती है। जब तक हमको यहाँ की प्राकृतिक स्थिति का ज्ञान न हो, हमारी यात्रा सफल नहीं हो सकती। सबसे पहले विचार-धाराओ को वहाँ ले जाना होगा। विद्वान् लोग भी कभी-कभी बालकों की-सी कल्पनाएँ करने लगते हैं।

मैं—वह दिन हमारे लिए सौभाग्य और गर्व का होगा।

महात्मा—प्राचीन काल में ऋषिगण योग-बल से त्रिकाल दृष्टि प्राप्त किया करते थे। पर उसमें बहुधा भ्रम हो जाता था। उसकी सहायता का कोई प्रत्यक्ष प्रमाण न होता था। मैंने वैज्ञानिक परीक्षाओं से उस कार्य को सिद्ध किया है। प्रण तो मैंने यही किया था कि किसी को यह रहस्य न बताऊँगा, लेकिन तुम्हारी तपस्या देखकर दया आ रही है। मेरे साथ आओ।

मैं महात्माजी के पीछे-पीछे एक ऐसी गुफा में पहुँचा, जहाँ केवल एक छोटी-सी चौकी रखी हुई थी। महात्माजी ने गम्भीर मुख से कहा—तुम्हें यह बात गुप्त रखनी होगी। मैने कहा—जैसी आज्ञा।

महात्मा—तुम इसका वचन देते हो।

मैं—आप इसकी किंचित्-मात्र भी चिन्ता न करें।

महात्मा—अगर किसी यश और धन के इच्छुक को यह खबर मिल गयी तो वह संसार में एक महान् क्रांति उपस्थित कर देगा और कदाचित् मुझे प्राणों से हाथ धोना पड़े। मैं मर जाऊँगा, किन्तु इस गुप्त ज्ञान का प्रचार न करूँगा। तुम इस चौकी पर लेट जाओ और आँखें बन्द कर लो।

चौकी पर लेटते ही मेरी आँखें झपक गयीं और पूर्व-जन्म के दृश्य आँखों के सामने आ गये। हाँ प्रिये, मेरा अतीत जीवित हो गया। यही भवन था, यही माता-पिता थे, जिनकी तसवीरें दीवानखाने में लगी हुई हैं। मै लड़कों के साथ बाग में गेंद खेल रहा था। फिर दूसरा दृश्य सामने आया। मैं गुरु की सेवा में बैठा हुआ पढ़ रहा था। यह वही गुरुजी थे, जिनकी तसवीर तुम्हारे कमरे में है। एक तिल का भी अन्तर नहीं है। इसके बाद युवावस्था का दृश्य आया। मैं तुम्हारे साथ एक नौका पर बैठा हुआ नदी में जल-क्रीड़ा कर रहा था। याद है वह दृश्य जब हवा वेग से चलने लगी थी और तुम डरकर मेरे हृदय से चिमट गयी थी?

देवप्रिया—खूब याद है, प्राणेश! खूब याद है।

राजकुमार—वह दृश्य याद है, जब मैं लताकुञ्ज में घास पर बैठा हुआ तुम्हें पुष्पाभूषणों से अलंकृत कर रहा था?

देवप्रिया—हाँ प्राणनाथ, खूब याद है। यही तो स्थान है!

राजकुमार—पाँचवा दृश्य वह था, जब में मृत्यु-शय्या पर पड़ा हुआ था। माता