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पृष्ठ:कायाकल्प.djvu/८

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‌कायाकल्प]
 


अब तो इसके सिवा उन्हें और कुछ सूझता ही न था। दीनों की सेवा और ता में जो आनन्द और आत्मगौरव था, वह दफ्तर में बैठकर कलम घिसने कहांँ।

इस प्रकार दो साल गुजर गये। मुशी वज्रधर ने समझा था, जब यह भूत इसके सर से उतर नायगा, शादी-व्याह की फिक्र होगी, तो आप-ही-आप नौकरी की तलाश पङेगा! जवानी का नशा बहुत दिन तक नहीं ठहरता । लेकिन जब दो साल जाने पर भी भूत के उतरने का कोई लक्षण न दिखायी दिया, तो एक उन्होंने चक्रधर को खूब फटकारा-दुनिया का दस्तूर है कि पहले अपने घर में जलाकर तब मसजिद में जलाते हैं। तुम अपने घर को अंधेरा रखकर मसजिद को रोशन करना चाहते हो। जो मनुष्य अपनों का पालन न कर सका, वह ख़ुदा की किस मुँह से मदद करेगा। मै बुढापे में खाने कपड़े को तरसू और अफसरो का कल्याण करते फिरो। मैंने तुम्हें पैदा किया, दूसरो ने नहीं, मैने तुम्हें पोसा, दूसरो ने नहीं, मैं गोद में लेकर हकीम वैद्यों के द्वार-द्वार दौड़ता फिरा, नहीं | तुम पर सबसे ज्यादा हक मेरा है, दूसरो का नहीं।

चक्रधर अब पिता की इच्छा से मुँह न मोड़ सके। उन्हें अपने कॉलेज ही मे जगह मिल सकती थी। वहाँ सभी उनका आदर करते थे; लेकिन यह उन्हे न था। बस कोई ऐसा धन्धा चाहते थे, जिससे थोड़ी देर रोज काम करके अपने की मदद कर सके। एक घण्टे से अधिक समय न देना चाहते थे । सयोग से शपुर के दीवान ठाकुर हरिसेवकसिंह को अपनी लड़की को पढ़ाने के लिए सुयोग्य और सच्चरित्र अध्यापक को जरूरत पड़ी। उन्होंने कालेज के प्रधानाध्यापक को इस विषय म एक पत्र लिखा । वेतन ३०) मासिक तक रक्खा । कालेज का प्राध्यापक इतने वेतन पर राजी न हुआ । आखिर उन्होने चक्रधर को उस काम में लगा दिया। काम बड़ी जिम्मेदारी का था, किन्तु चक्रधर इतने सुशील, इतने परिश्रमी और इतने सयमी थे कि उन पर सत्रको पूरा विश्वास था।

दूसरे दिन से चक्रधर ने लडकी को पढ़ाना शुरू कर दिया ।


कई महीने बीत गये । चक्रधर महीने के अन्त में रुपए लाते और माता के हाथ रख देते। अपने लिए उन्हे रुपए की कोई जरूरत न थी। दो मोटे कुरतों पर काट देते थे। हाँ, पुस्तको से उन्हें रुचि यो; पर इसके लिए कॉलेज का पुस्तकालय खुला हुआ था, सेवा कार्य के लिए चन्दों से रुपये या जाते थे । मुंशी वज्रघर द भी कुछ सीधा हो गया । डरे कि इससे ज्यादा दबाऊँ, तो शायद यह भो हाथ से निकल जाय। समझ गये कि जब तक विवाह की बेङी पाँव मे न पड़ेगी यह महाशय काबू आयेंगे । वह बेङी बनवाने का विचार करने लगे।

मनोरमा की उम्र अभी १३ वर्ष से अधिक न हो, लेकिन वक्रधर को उसे पढ़ाते