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पृष्ठ:कायाकल्प.djvu/९१

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कायाकल्प]
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से मिले। आप महाजनों को देखते हैं, मालिक मुनीम को लिखता है कि फलाँ काम के लिए रुपया दे दो, मुनीम हीले हवाले करके टाल देता है। हमारी अँगरेजी सरकार ही को देखिए। ऊपरवाले हुक्काम कितनी मुलायमियत से बातें करते हैं; लेकिन उनके मातहत खूब जानते हैं कि किसके साथ कैसा बर्ताव करना चाहिए। चलिए, अब हुजुर को तकलीफ न दीजिए। मेंडूखाँ, बस यही समझ लो कि निहाल हो जाओगे।

राजा—बस, इतना खयाल रखिए कि किसी को कष्ट न होने पाये। आपको ऐसो व्यवस्था करनी चाहिए कि आसामी लोग सहर्ष आकर शरीक हों।

मुंशी—हुजूर का फरमाना बहुत वाजिब है। अगर हुजूर सख्ती करने लगेंगे, तो उन गरीबो के आँसू कौन पोंछेगा। उन्हें तसकीन कौन देगा। हुकूमत करने के लिए तो आपके गुलाम हम हैं। सूरज जलता भी है, रोशनी भी देता है। जलानेवाले हम हैं, रोशनी देनेवाले आप हैं। दुआ का हक आपका है, गालियों का हक हमारा। चलिए, दीवान साहब, अब हुजूर को सितार का शौक करने दीजिए।

दोनों आदमी यहाँ से चले, तो दीवान साहब ने कहा—ऐसा न हो कि शोर-गुल मचे तो हमारी जान आफत में फँसे।

मुंशीजी बोले—यह सब बगला भगत पन है। मैं तो रुख पहचानता हूँ। गरीबों का जिक्र ही क्या, हमें कभी एक पैसा का नुकसान हो जाता है, तो कितना बुरा मालूम होता है। जिससे आप १०) ऐंठ लेंगे, क्या वह खुशी से दे देगा? इसका मतलब यही है कि धड़ल्ले से रुपए की वसूली कीजिए। किसी राजा ने आज तक न कहा होगा कि प्रजा को सताकर रुपये वसूल कीजिए। लेकिन चन्दे जब वसूल होने लगे और शोर मचा, तो किसी ने कर्मचारियो की तम्बीह नहीं की। यही हमेशा से होता आया है और यही अब भी हो रहा है।

हुक्म मिलने की देर थी। कर्मचारियों के हाथ तो खुजला रहे थे। वसूली का हुक्म पाते ही बाग-बाग हो गये। फिर तो वह अन्धेर मचा कि सारे इलाके में कुहराम पड़ गया। आसामियों ने नये राजा साहब से दूसरी आशाएँ बाँध रखी थीं। यह बला सिर पड़ी, तो झल्ला गये। यहाँ तक कि कर्मचारियों के अत्याचार देखकर चक्रधर का भी खून उबल पड़ा। समझ गये कि राजा साहब भी कर्मचारियों के पंजे मे आ गये। उनसे कुछ कहना-सुनना व्यर्थ है। चारों तरफ लूट-खसोट हो रही थी। गालियाँ और ठोंक-पीट तो साधारण बात थी, किसी के बैल खोल लिए जाते थे, किसी को गाय छीन ली जाती थी, कितनों ही के खेत कटवा लिये गये। बेदखली और इजाफे की धमकियाँ दी जाती थीं। जिसने खुशी से दिये, उसका तो १०) ही में गला छूटा। जिसने हीले हवाले किये, कानून बघारा, उसे १०) के बदले २०), ३०), ४०) देने पड़े। आखिर विवश होकर एक दिन चक्रधर ने राजा साहब से शिकायत कर ही दी।

राजा साहब ने त्योरी बदल कर कहा—मेरे पास तो आज तक कोई आसामी शिका-