पृष्ठ:कार्ल मार्क्स, फ्रेडरिक एंगेल्स.djvu/३३

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वे धीरे-धीरे इस योग्य बन जाते हैं कि कुछ धन इकट्ठा कर सकें और अपने को भावी पूंजीपतियों में परिवर्तित कर सकें। इस प्रकार स्वयं खेती करनेवाले पुराने भू-स्वामियों के भीतर ही पूंजीवादी पट्टेदारों के लिए परिस्थितियां तैयार होती हैं। इन काश्तकारों का विकास खेती के बाहर के पूंजीवादी उत्पादन के विकास पर निर्भर होता है।' ('पूंजी', खंड ३, पृष्ठ ३३२)... "खेतिहरों के एक भाग के अपहरण किये जाने से और उनके बेदखल होने से प्रौद्योगिक पूंजी के लिए मजदूर, उनकी जीविका के साधन , और श्रम के औज़ार ही खाली नहीं हो गये वरन् उससे घर का बाज़ार भी बना।” ( 'पूंजी', खंड १, पृष्ठ ७७८ ) इसके बाद खेतिहर जनता की ग़रीबी और तबाही से पूंजी के लिए मजदूरों की रिज़र्व फ़ौज बनती है। हर पूंजीवादी देश में “खेतिहर जनता का एक भाग शहर के या कारखाने में काम करने वाले सर्वहारा वर्ग में परिवर्तित होने की सीमा पर सदा ही तैयार रहता है (कारखानों से यहां सभी गैर-खेतिहर धंधों से मतलब है)। इस प्रकार अपेक्षाकृत अतिरिक्त जनसंख्या का यह स्रोत सदा बहा करता है ... इसलिए खेतिहर मजूर को कम से कम पैसा मिलता है और उसका एक पैर निराश्रयता के दलदल में बना ही रहता है।” ('पूंजी', खंड १, पृष्ठ ६६८) जिस भूमि को किसान जोतता-बोता है, उसपर उसका निजी स्वामित्व ही छोटे पैमाने के उत्पादन का आधार है और इस उत्पादन की बढ़ती, उसके क्लासिकल रूप प्राप्त करने के लिए आवश्यक है। परन्तु इस तरह का टुटपुंजिया उत्पादन समाज और उत्पादन के संकुचित और पुराने ढांचे में ही संभव है। पूंजीवाद में “किसानों के शोषण का केवल रूप ही औद्योगिक सर्वहारा वर्ग के शोषण से भिन्न है। शोषक एक ही है : पूंजी। अलग-अलग पूंजीपति रेहन और ब्याज से अलग-अलग किसानों का शोषण करते हैं ; पूंजीवादी वर्ग राजकीय करों द्वारा किसान वर्ग का शोषण करता है।" ('फ्रांस में वर्ग-संघर्ष' ) "अब किसान की थोड़ी सी ज़मीन उससे मुनाफ़ा , ब्याज और कर लेने के लिए पूंजीपति के पास बहाने भर का काम देती है; ज़मीन से किसान अपनी जीविका कैसे वसूल करता है, यह जिम्मा उसका है।" ( 'अठारहवीं ब्रूमेयर') किसान अपनी

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