पृष्ठ:कार्ल मार्क्स, फ्रेडरिक एंगेल्स.djvu/३६

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जो नित बहुमुखी होते जाते हैं , अनिवार्यतः एक राजनीतिक संघर्ष हो जाता है जिसका ध्येय सर्वहारा वर्ग द्वारा राजनीतिक शक्ति को जीतना होता है (“सर्वहारा अधिनायकत्व")। उत्पादन के समाजीकरण से उत्पादन के साधनों का समाज के हाथ में आ जाना अनिवार्य है और “अपहरण करनेवाले स्वयं अपहरण किये जायेंगे"। इस परिवर्तन का सीधा परिणाम यह होगा कि श्रम की उत्पादिता में विशाल वृद्धि होगी, मजूरी के घंटे कम होंगे , बचे-खुचे और नष्टप्राय टुटपुंजिये और अलग-अलग उत्पादन के बदले सामूहिक और उन्नत श्रम होगा। अन्त में पूंजीवाद, कृषि और उद्योग-धंधों के संबंध को तोड़ देता है; लेकिन साथ ही अपने उच्चतम विकास के होते-होते , वह दोनों के बीच का संबंध स्थापित करने के लिए नये सूत्र तैयार करता है। सचेत रूप से विज्ञान के उपयोग, सामूहिक श्रम के मेल और जनसंख्या के पुनर्वितरण के आधार पर वह कृषि और उद्योग-धंधों को मिलाता है (वह एक साथ ही देहात के अलगाव और अकेलेपन को, असभ्यता और बड़े-बड़े शहरों में विशाल जन-समूहों के अस्वाभाविक केन्द्रीकरण को समाप्त कर देता है)। आधुनिक पूंजीवाद के उच्चतम रूपों द्वारा कुटुम्ब के एक नये प्रकार, स्त्रियों की स्थिति और नयी पीढ़ी की शिक्षा-दीक्षा में परिवर्तन की तैयारी हो रही है। वर्तमान समाज में स्त्रियों और बच्चों द्वारा मजदूरी, पूंजीवाद द्वारा दादा- पंथी कुटुम्ब का नष्ट-भ्रष्ट होना आवश्यक रूप से बड़े ही भयावह', सर्वनाशी और जघन्य रूपों में प्रकट होते हैं। फिर भी "वर्तमान उद्योगधंधे घर के बाहर उत्पादन-क्रम में स्त्रियों, नौजवानों और छोटे छोटे लड़के-लड़कियों को महत्वपूर्ण भाग देकर कुटुम्ब और स्त्री-पुरुष के संबंध के एक उच्चतर रूप के लिए एक आर्थिक आधार का निर्माण करते हैं। कुटुम्ब के ट्यूटौनिक-ईसाई रूप को अचल और त्रिकाल-सत्य समझना वैसे ही भ्रमपूर्ण है जैसे प्राचीन रोम, ग्रीस के कुटुम्ब को या कुटुम्ब के पूर्वी रूपों को ऐसा समझना। सम्मिलित रूप से ये ऐतिहासिक विकास की शृंखलाएं हैं। यह भी स्पष्ट है कि सभी उम्र के स्त्री और पुरुष - दोनों ही तरह के व्यक्तियों से सामूहिक रूप में काम करने वाला गुट बनता है, इस बात से अवश्य ही अनुकूल परिस्थितियों में उसे मानवीय

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