पृष्ठ:कार्ल मार्क्स, फ्रेडरिक एंगेल्स.djvu/३५

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क़ीमत में बढ़ती छोटे किसानों की संपत्ति का आवश्यक नियम है।" उद्योग-धंधों की भांति कृषि में भी “उत्पादकों की शहादत" की कीमत देकर ही पूंजीवाद उत्पादन-क्रम को बदलता है। “खेतिहर मजूरों के बड़े- बड़े इलाकों में फैल जाने से उनकी विरोध करने की शक्ति टूट जाती है जब कि केन्द्रीकरण से शहर के कमकरों की शक्ति बढ़ती है। जैसे शहर के उद्योग-धंधों में, वैसे ही वर्तमान पूंजीवादी कृषि में श्रम-शक्ति को ही नष्ट करने और निर्बल किये जाने से ही चालू श्रम की बढ़ी हुई उत्पादकता और गतिशीलता प्राप्त की जाती है। इसके सिवा पूंजीवादी कृषि में सभी उन्नति मजदूरों को ही लूटने की नहीं, वरन् धरती को भी लूटने की कला में उन्नति है इसलिए पूंजीवादी उत्पादन सभी तरह की सम्पत्ति के मूल स्रोत - धरती और मजूर-को निचोड़ कर ही टेकनोलाजी का विकास करता है और विभिन्न क्रमों को एक ही सामाजिक क्रम में मिलाता है।" ( 'पूंजी', खंड १, अध्याय १३ का अन्त )


समाजवाद

ऊपर की बातों से स्पष्ट है कि मार्क्स ने एकमात्र तत्कालीन समाज की गति के आर्थिक नियम के ही बल पर यह निष्कर्ष निकाला है कि पूंजीवादी समाज अनिवार्य रूप से समाजवादी समाज में परिवर्तित हो जायेगा। समाजवाद के आगमन की अनिवार्यता का मुख्य भौतिक आधार श्रम का समाजीकरण है जो अपने असंख्य रूपों में तीन और तीव्रतर गति से आगे बढ़ता रहा है। मार्क्स की मृत्यु के बाद के पचास वर्षों में, बड़े पैमाने पर उत्पादन के विकास में , पूंजीपतियों के कार्टेलों, सिण्डीकेटों और ट्रस्टों में , साथ ही वित्तीय पूंजी (फ़ैनेन्शल कैपिटल ) की सीमारेखाओं और शक्ति के अतिप्रसार में विशेष स्पष्टता से यह वृद्धि प्रकट होती रही है। इस परिवर्तन की बौद्धिक और नैतिक प्रेरक-शक्ति , उसको भौतिक रूप से संपन्न करनेवाली शक्ति , सर्वहारा वर्ग है जिसे पूंजीवाद ने ही शिक्षित किया

है। पूंजीपतियों के विरुद्ध सर्वहारा वर्ग का संघर्ष नाना रूप धारण करता हुआ,

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