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पृष्ठ:कार्ल मार्क्स, फ्रेडरिक एंगेल्स.djvu/४३

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के हितों के लिए एक नववयस्क और शक्तिमान जनता के प्रथम वयसुलभ प्रेरणाओं का मार्ग निर्देश करना पड़े (‘नोये राइनिशे त्साइटुङ', १८४८; देखिये 'साहित्यिक विरासत', खंड ३, पृष्ठ २१२ )¹⁹ लगभग बीस साल बाद एंगेल्स को पत्र लिखते हुए ('पत्र-व्यवहार', खंड ३, पृष्ठ २२४) मार्क्स ने कहा था कि १८४८ की क्रान्ति की असफलता का कारण यह था कि पूंजीपतियों ने स्वतंत्रता के लिए लड़ने की कल्पना मात्र से गुलामी के साथ शान्ति को श्रेयस्कर समझा। जब १८४८-१८४६ का क्रान्तिकारी युग समाप्त हो गया, तो मार्क्स ने क्रान्ति के साथ किसी भी तरह खिलवाड़ करने का भारी विरोध किया (शापर और विलिख और उनके विरुद्ध संघर्ष ) और इस पर जोर दिया कि नयी अवस्था में जब तथाकथित “शान्तिपूर्ण" ढंग से नयी क्रान्तियों की तैयारी हो रही है, हममें कार्य-क्षमता होनी चाहिए। १८५६ की घोर प्रतिक्रिया के दिनों में मार्क्स ने जर्मनी की स्थिति का जैसा विवरण दिया था उससे स्पष्ट है कि वह किस भावना से काम किया जाना पसन्द करते थे : “किसी दूसरे कृषक-युद्ध द्वारा सर्वहारा क्रान्ति के समर्थन किये जाने की संभावना पर ही जर्मनी में सब कुछ निर्भर है।" ('पत्र-व्यवहार', खंड २, पृष्ठ १०८ )²⁰ जर्मनी में जब पूंजीवादी-जनवादी क्रान्ति चालू थी, तो समाजवादी सर्वहारा वर्ग की कार्यनीति में मार्क्स ने सारा ध्यान किसानों की जनवादी शक्ति को बढ़ाने में लगाया। उनका कहना था कि और बातों के साथ लासाल का रवैया “वस्तुगत रूप से प्रशियन हित में सम्पूर्ण मजदूर आन्दोलन के प्रति विश्वासघात था" (खंड ३, पृष्ठ २१०) क्योंकि वह जंकरों (प्रशा के ज़मींदारों-सं०) और प्रशियन राष्ट्रवाद की कार्यवाहियों पर आंखें मूंदे रहा। १८६५ को अपनी एक संयुक्त घोषणा के बारे में - जो प्रेस के लिए लिखी गयी थी-मार्क्स से विचार- विनिमय करते हुए एंगेल्स ने लिखा था : "ऐसे देश में जहां कृषि की बहुत बड़ी प्रधानता हो, औद्योगिक सर्वहारा वर्ग के नाम पर पूंजीपतियों पर ही अकेले हमला करना, और सामन्तशाही अभिजात-वर्ग के अंकुश के नीचे ग्रामीण मजदूर के दादापंथी शोषण के प्रति एक शब्द भी न कहना , निरी कायरता है।" (खंड ३, पृष्ठ २१७ )²¹ १८६४ से १८७० की

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