पृष्ठ:कार्ल मार्क्स, फ्रेडरिक एंगेल्स.djvu/४४

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अवधि में , जब जर्मनी में पूंजीवादी-जनवादी क्रान्ति का युग , वह युग जिस में प्रशा और आस्ट्रिया के शोषक वर्गों ने किसी न किसी तरह ऊपर से क्रान्ति को सम्पन्त करने के लिए युद्ध किया था, समाप्त हो रहा था , मार्क्स ने लासाल की ही भर्त्सना न की थी कि वह बिस्मार्क से मेल-मिलाप कर रहा था, वरन् लीब्कनेख्त को भी ठीक रास्ता दिखाया क्योंकि वह "आस्ट्रिया-भक्ति" में निमग्न हो रहे थे और पार्टीक्युलारिज्म²² का पक्ष समर्थन करने लगे थे। मार्क्स ने उस क्रान्तिकारी कार्यनीति पर भरपूर जोर दिया जो बिस्मार्क और आस्ट्रिया-भक्ति" दोनों से ही समान निर्ममता से युद्ध करे, उस कार्यनीति जो न केवल “विजेता", प्रशियन जंकर के अनुकूल न हो वरन् उसी आधार पर, जो प्रशा की सैनिक विजय से बना था, तुरन्त ही उस जंकर के विरुद्ध क्रान्तिकारी संघर्ष भी छेड़ दे। ( 'पत्र-व्यवहार', खंड ३, पृष्ठ १३४, १३६ , १४७, १७६ , २०४, २१० , २१५, ४१८, ४३७, ४४०-४४१)²⁴ इण्टरनेशनल की ६ सितम्बर १८७० की अपनी प्रसिद्ध अपील में मार्क्स ने फ्रांसीसी सर्वहारा वर्ग को असमय विद्रोह करने की ओर से सावधान किया। लेकिन १८७१ में जब विद्रोह वास्तव में हो गया तो मार्क्स ने बड़े ही जोश से जनता की क्रान्तिकारी पहलकदमी का स्वागत किया कि वह आसमान को हिला देने" के लिए चली थी (कुगेलमन को मार्क्स का पत्र )। द्वंद्वात्मक पदार्थवाद के मार्क्सीय दृष्टिकोण से , सर्वहारा संघर्ष की सामान्य प्रगति और उसके परिणाम के दृष्टिकोण से ऐसी स्थिति में और ऐसी ही अन्य स्थितियों में, अब तक के मोर्चे से पीछे हट जाने और बिना युद्ध के आत्मसमर्पण कर देने की अपेक्षा क्रान्तिकारी आक्रमण की विफलता कम हानिकारक थी क्योंकि उस तरह के आत्मसमर्पण से सर्वहारा वर्ग का मनोबल क्षीण हो जाता और संघर्ष के लिए उसकी तत्परता नष्ट हो जाती। राजनीतिक शिथिलता के दिनों में और उन दिनों में जब पूंजीवाद का कानूनीपन फैला हुआ हो, तब लड़ाई के क़ानूनी साधनों के महत्व को पूरी तरह स्वीकार करते हुए, मार्क्स ने १८७७ और १८७८ में, जब जर्मनी में समाजवादियों के विरुद्ध असाधारण कानून बना था , मोस्ट की “क्रान्तिकारी शब्दाडम्बर" की तीव्र निन्दा की थी। साथ ही उन्होंने उतनी ही तेज़ी से अवसरवाद

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