से प्रकाशित होनेवाले जनवादी 'नया राइनी समाचारपत्र' ('नोये राइनिशे साइटुङ') की बागडोर अपने हाथों में ली। ये दोनों मित्र राइनी प्रशा की सारी क्रान्तिकारी-जनवादी आकांक्षाओं के हृदय और आत्मा थे। उन्होंने आख़िरी दम तक प्रतिक्रियावादी शक्तियों के विरुद्ध जनता के हितों और स्वतंत्रता की रक्षा की। जैसा कि हम जानते हैं , जीत प्रतिक्रियावादी शक्तियों की हुई। 'नोये राइनिशे त्साइटुङ' का गला घोंट दिया गया। मार्क्स को, जो पिछले निर्वासन-काल में अपनी प्रशियाई नागरिकता खो चुके थे, फिर निर्वासित कर दिया गया; पर एंगेल्स ने सशस्त्र जन-विप्लव में भाग लिया , स्वतंत्रता के लिए तीन लड़ाइयों में जौहर दिखाया और विप्लवकारियों की पराजय के बाद स्विट्ज़रलैंड से होकर लंदन भाग गये।
मार्क्स भी वहीं बस गये। एंगेल्स फिरेक बार मैंचेस्टर के उसी व्यापारिक प्रतिष्ठान में क्लर्क बन गये जहां वे उन्नीसवीं शताब्दी के पांचवें दशक में काम करते थे। बाद में वह उक्त प्रतिष्ठान के हिस्सेदार बने। १८७० तक वह मैचेस्टर में रहे जब कि मार्क्स लंदन में रहते थे। फिर भी इससे उनके अत्यंत जीवंत बौद्धिक संपर्क के जारी रहने में कोई बाधा न आयी : लगभग हर रोज़ उनकी चिट्ठी-पनी चलती थी। इस पत्र-व्यवहार द्वारा मित्र-द्वय ने दृष्टिकोणों एवं ज्ञान का आदान-प्रदान और वैज्ञानिक समाजवाद की रचना में सहयोग जारी रखा। १८७० में एंगेल्स लंदन चले गये और वहां उनका भारी परिश्रम से भरपूर संयुक्त बौद्धिक जीवन १८८३ तक अर्थात् मार्क्स के देहांत तक जारी रहा। इस परिश्रम का फल मार्क्स की ओर से 'पूंजी' रहा, जो राजनीतिक अर्थशास्त्र पर हमारे युग की सबसे महान् रचना है, और एंगेल्स की ओर से कितनी ही छोटी-मोटी रचनाएं। मार्क्स ने पूंजीवादी अर्थतंत्र के जटिल व्यापारों के विश्लेषण पर काम किया। एंगेल्स ने सीधी-सादी और अक्सर खंडन-मंडनात्मक भाषा में लिखी हुई अपनी रचनाओं में साधारणतः वैज्ञानिक समस्याओं और अतीत तथा वर्तमान की विविध घटनाओं का विवेचन इतिहास की पदार्थवादी धारणा और मार्क्स के आर्थिक सिद्धांत के प्रकाश में किया। एंगेल्स की इन रचनाओं में से हम निम्नलिखित रचनाओं का उल्लेख करेंगे : ड्यूहरिंग के विरुद्ध
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