सकता है कि उसके विज्ञान की रचना दो ऐसे पंडितों और योद्धाओं ने की जिनके परस्पर संबंधों ने प्राचीन लोगों की मानवीय मैत्री की अत्यंत हृदयस्पर्शी कथानों को पीछे छोड़ दिया। एंगेल्स सदा ही - और आम तौर पर न्यायसंगत रूप से - अपने को मार्क्स के बाद रखते थे। “मार्क्स के जीवन काल में," उन्होंने अपने एक पुराने मित्र को लिखा था, "मैंने पूरक भूमिका अदा की।"³⁸ जीवित मार्क्स के प्रति उनका प्रेम और मृत मार्क्स की स्मृति के प्रति उनका आदर असीम था। इस दृढ़ योद्धा और कठोर विचारक का हृदय गहरे प्रेम से परिपूर्ण था।
१८४८-४९ के आंदोलन के बाद निर्वासन-काल में मार्क्स और एंगेल्स केवल वैज्ञानिक कार्य में ही नहीं व्यस्त रहे । १८६४ में मार्क्स ने 'अंतर्राष्ट्रीय मजदूर सभा' की स्थापना की और पूरे दशक भर इस संस्था का नेतृत्व किया। एंगेल्स ने भी इस संस्था के कार्य में सक्रिय भाग लिया। 'अंतर्राष्ट्रीय सभा' ने मार्क्स के विचारानुसार सभी देशों के सर्वहारा को एक किया और मजदूर वर्ग के आंदोलन के विकास की दृष्टि से अत्यंत महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा की। पर १६ वीं शताब्दी के आठवें दशक में उक्त सभा का अंत होने के बाद भी मार्क्स और एंगेल्स की एकीकरण विषयक भूमिका नहीं समाप्त हुई। इसके विपरीत कहा जा सकता है कि मज़दूर आंदोलन के आध्यात्मिक नेताओं के रूप में उनका महत्त्व सतत बढ़ता रहा, क्योंकि स्वयं यह आंदोलन भी अप्रतिहत रूप से प्रगति करता रहा। मार्क्स की मृत्यु के बाद अकेले एंगेल्स यूरोपीय समाजवादियों के परामर्शदाता और नेता बने रहे। उनका परामर्श और मार्गदर्शन जर्मन समाजवादी और स्पेन , रूमानिया, रूस आदि जैसे पिछड़े देशों के प्रतिनिधि भी समान रूप से चाहते थे। जर्मन समाजवादियों की शक्ति सरकारी यंत्रणाओं के बावजूद शीघ्रता से और सतत बढ़ रही थी और उक्त पिछड़े देशों के प्रतिनिधि अपने पहले क़दमों के बारे में विचार करने और क़दम उठाने को विवश थे। वे सब वृद्ध एंगेल्स के ज्ञान और अनुभव के समृद्ध भंडार से लाभ उठाते थे।
मार्क्स और एंगेल्स दोनों रूसी भाषा जानते थे और रूसी पुस्तकें पढ़ा करते थे। रूस के बारे में वे जीवंत रुचि लेते थे, रूसी क्रांतिकारी आंदोलन
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