के प्रति सहानुभूति रखते थे और रूसी क्रांतिकारियों से संपर्क बनाये हुए थे। समाजवादी बनने से पहले वे दोनों जनवादी थे और राजनीतिक निरंकुशता के प्रति घृणा की जनवादी भावना उनमें बहुत ही बलवती थी। इस प्रत्यक्ष राजनीतिक भावना, उसके साथ साथ राजनीतिक निरंकुशता और आर्थिक उत्पीड़न के बीच के संबंधों की गंभीर सैद्धांतिक समझबूझ और इसी तरह जीवन विषयक समृद्ध अनुभव ने मार्क्स और एंगेल्स को यथार्थतः राजनीतिक दृष्टिकोण से असाधारण रूप में संवेदनशील बना दिया। इसी कारण बलशाली जारशाही सरकार के विरुद्ध मुट्ठी-भर रूसी क्रांतिकारियों के संघर्ष ने इन जांचे-परखे क्रांतिकारियों के हृदयों में सहानुभूति की प्रतिध्वनि उत्पन्न की। दूसरी ओर, मायावी आर्थिक सुविधाओं की प्राप्ति के लिए रूसी समाजवादियों के सबसे फ़ौरी और सबसे महत्त्वपूर्ण काम की ओर से, यानी राजनीतिक स्वतंत्रता प्राप्त करने की ओर से मुंह मोड़ लेने की प्रवृत्ति की और उन्होंने संशय की दृष्टि से देखा, और इतना ही नहीं, उन्होंने उसे सामाजिक क्रांति के महान् कार्य के प्रति विश्वासघात माना। “सर्वहारा की मुक्ति स्वयं सर्वहारा का ही काम होना चाहिए" मार्क्स और एंगेल्स बराबर यही सीख देते रहे। पर अपनी आर्थिक मुक्ति के लिए सर्वहारा को अपने लिए कुछ राजनीतिक अधिकार प्राप्त कर लेने चाहिए। इसके अलावा मार्क्स और एंगेल्स ने स्पष्ट रूप से देखा कि रूस की राजनीतिक क्रांति पश्चिमी-यूरोपीय मजदूर आंदोलन के लिए भी अत्यंत महत्त्वपूर्ण सिद्ध होगी। स्वेच्छाचारी रूस सदा से ही आम तौर पर यूरोपीय प्रतिक्रिया का गढ़ रहा था। एक लंबे समय तक जर्मनी और फ्रांस के बीच अनबन के बीज बोनेवाले १८७० के युद्ध के परिणामस्वरूप रूस को प्राप्त हुई अत्यधिक अनुकूल अंतर्राष्ट्रीय स्थिति ने अवश्य ही प्रतिक्रियावादी शक्ति के रूप में स्वेच्छाचारी रूस का महत्त्व बढ़ा ही दिया। केवल स्वतंत्र रूस , यानी वह रूस, जिसे न पोलों, फ़िन्नियों, जर्मनों , अर्मनियों या अन्य छोटे-मोटे राष्ट्रों को उत्पीड़ित करने की और न ही फ्रांस और जर्मनी को बराबर एक दूसरे के विरुद्ध उभाड़ने की आवश्यकता होती, वही वर्तमान यूरोप को युद्ध के भार से मुक्त होने में समर्थ बना देता, यूरोप के सभी प्रतिक्रियावादी तत्त्वों को निर्बल कर
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