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पृष्ठ:कार्ल मार्क्स, फ्रेडरिक एंगेल्स.djvu/७

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सितम्बर १८४४ में एंगेल्स कुछ दिन के लिए पेरिस आये और तबसे मार्क्स के घनिष्ठ मित्र हो गये। पेरिस के क्रान्तिकारी गुटों के सक्रिय जीवन में दोनों ने प्रत्यक्ष रूप से भाग लिया (यहां पर प्रूदों के सिद्धान्तों⁵ का बोलबाला था ; आगे चलकर १८४७ में मार्क्स ने 'दर्शनशास्त्र की निर्धनता' नाम की अपनी पुस्तक में उन सिद्धान्तों की बखिया उधेड़ दी)। निम्न- पूंजीवादी समाजवाद के विभिन्न सिद्धान्तों का डटकर खंडन करने के साथ- साथ उन्होंने क्रान्तिकारी सर्वहारा-समाजवाद या कम्युनिज्म (मार्क्सिज्म) के सिद्धान्तों और कार्यनीति की रूपरेखा निश्चित की। इस विषय की विशेष जानकारी के लिए, मार्क्स के इस काल के यानी १८४४-१८४८ के बीच के 'साहित्य' में दिये गये ग्रंथ देखिये। १८४५ में प्रशा की सरकार के आग्रह पर मार्क्स को एक ख़तरनाक क्रान्तिकारी करार देकर पेरिस से निकाल दिया गया। पेरिस से वह ब्रसेल्स आ गये। १८४७ के वसन्त में मार्क्स और एंगेल्स एक गुप्त प्रचार सभा 'कम्युनिस्ट लीग'⁶ के सदस्य हो गये। उसकी दूसरी कांग्रेस में (लन्दन , नवम्बर, १८४७) उन्होंने विशेष भाग लिया, और उसी के अनुरोध पर उन्होंने अपना प्रसिद्ध 'कम्युनिस्ट पार्टी का घोषणापत्र' तैयार किया, जो फ़रवरी १८४८ में प्रकाशित हुआ। इस रचना में प्रतिभाशाली स्पष्टता और अनूठेपन से नया दृष्टिकोण हमारे सामने रखा गया है। इसमें पदार्थवाद का संगत रूप है जिसका प्रसार सामाजिक जीवन तक हुआ है। यह घोषित करता है कि द्वंद्ववाद विकास का सबसे व्यापक और आधारभूत सिद्धान्त है। इसने वर्ग-संघर्ष के सिद्धान्त और एक नये कम्युनिस्ट समाज के निर्माण में सर्वहारा वर्ग की विश्वव्यापी ऐतिहासिक क्रान्तिकारी भूमिका का प्रतिपादन किया।

जब १८४८ की फ़रवरी क्रान्ति शुरू हो गयी, तो मार्क्स बेलजियम से निकाल दिये गये। वह पेरिस लौट आये और मार्च की क्रान्ति के बाद वहां से जर्मनी में कोलोन चले गये। १ जून १८४८ से १६ मई १८४६ तक कोलोन में 'नोये राइनिशे त्साइटुङ' निकलता रहा जिसके प्रधान सम्पादक मार्क्स थे। १८४८-१८४९ की क्रान्तिकारी घटनाओं से नये सिद्धान्त की जोरदार पुष्टि हुई जैसे कि बाद में भी संसार के सभी देशों के सर्वहारा और जनवादी आन्दोलनों से उसकी पुष्टि हुई है। जर्मनी में क्रान्तिविरोधी