१०२ पूंजीवादी उत्पादन . मूल्यों के रूप में व्यवहार में पाने का अवसर देता है। इसलिये, मालों के उपयोग मूल्यों के म में व्यवहार में पाने के पहले यह जरूरी है कि वे मूल्यों के रूप में व्यवहार में पायें। दूसरी मोर, मालों के मूल्यों के म में व्यवहार में पाने के पहले उनका यह चाहिर करना खरी है कि वे उपयोग मूल्य हैं। कारण कि उनपर खर्च किये गये बम का महत्व केवल उसी हद तक होता है, जिस हद तक कि वह ऐसे ढंग से खर्च किया जाता है, जो दूसरों के लिये उपयोगी हो। वह बम दूसरों के लिये उपयोगी है या नहीं और चुनाचे उससे पैदा होने वाली वस्तु दूसरों की आवश्यकताओं को पूरा करने की योग्यता रखती है या नहीं, यह केवल विनिमय- कार्य द्वारा ही सिद्ध हो सकता है। माल का प्रत्येक मालिक केवल ऐसे मालों से उसका विनिमय करना चाहता है, जिनके उपयोग-मूल्य से उसकी कोई प्रावश्यकता पूरी होती हो। इस दृष्टि से विनिमय उस के लिये केवल एक निजी सौा होता है। दूसरी मोर, वह यह चाहता है कि उसके माल के मूल्य को मूर्त रूप प्राप्त हो, यानी उसका माल समान मूल्य के किसी अन्य उपयुक्त माल में बदल जाये, भले ही दूसरे माल के मालिक के लिये उसके अपने माल का कोई उपयोग-मूल्य हो या न हो। इस दृष्टि से विनिमय उसके लिये एक सामान्य ढंग का सामाजिक सौदा होता है। लेकिन यह नहीं हो सकता कि सौदों की कोई एक ही तरतीब मालों के सभी मालिकों के लिये एक ही समय में विशुद्ध निजी बीच भी हो और विशुद्ध सामाजिक एवं सामान्य चीन भी। माइये, इस मामले की पोड़ी और गहराई में जायें। किसी भी माल के मालिक के लिये दूसरा हरेक माल उसके अपने माल का एक विशिष्ट सम-मूल्य होता है और इसलिये खुब उसका माल बाकी सब मालों का सार्वत्रिक सम-मूल्य होता है। लेकिन चूंकि यह बात हर मालिक पर लागू होती है, इसलिये वास्तव में कोई माल सार्वत्रिक सम-मूल्य का काम नहीं करता और मालों के सापेक्ष मूल्य का कोई ऐसा सामान्य रूप नहीं होता, जिसमें उनका मूल्यों के रूप में समीकरण किया जा सके और उनके मूल्यों के परिमाण का मुकाबला किया जा सके। इसलिये अभी तक माल मालों के रूप में एक दूसरे का सामना नहीं करते, बल्कि केवल पैदावार के रूप में, या उपयोग- मूल्यों के रूप में, एक दूसरे के सामने पाते हैं। इस कठिनाई के पैदा होने पर हमारे मालों के मालिकोस्ट की तरह सोचते हैं कि "Im Anfang war dle That" ("शुस्मात अमल से हुई थी")। चुनाचे, उन्होंने सोचने के पहले अमल किया और सौबा कर गला। मालों का स्वभाव जिन नियमों को अनिवार्य बना देता है, उनका वे सहज प्रवृत्ति से पालन करते हैं। अपने मालों का मूल्यों के रूप में और इसलिये मालों के प में एक दूसरे के साथ सम्बंध स्थापित करने का उनके सामने सिर्फ यही एक तरीका है कि अपने मालों का सार्वत्रिक सम-मूल्य के रूप में किसी और माल के साथ मुकाबला करें। यह बात हम माल के विश्लेषण से जान चुके हैं। लेकिन कोई खास माल केवल एक सामाजिक कार्रवाई से ही सार्वत्रिक सम-मूल्य बन सकता है। इसलिये बाकी सब मालों को सामाजिक कार्रवाई उस खास माल को अलग कर देती है, जिसके स में सब अपने मूल्यों को व्यक्त करते हैं। चुनाचे, इस माल का शारीरिक म सामाजिक तौर पर मान्य सार्वत्रिक सन-मूल्य का रूप बन जाता है। इस सामाजिक क्रिया के परिणामस्वरूप सार्वत्रिक सम-मूल्य होना उस माल का बास काम बन जाता है, जिसे बाकी माल इस तरह अपने से अलग कर देते हैं। इस प्रकार वह माल बन जाता है-महा। "IIll unum consillum habent et virtutem et potestatem suam bestiae tradunt. Et ne quis possit emere aut vendere, nisi qui habet characterem aut nomen bestiae, aut numerum nominis . . .
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