विनिमय १०१ और इसलिये मालों के मालिकों के रूप में अस्तित्व होता है। अपनी खोज के दौरान में हम माम तौर पर यह पायेंगे कि प्रार्षिक रंगमंच पर पाने वाले पात्र केवल उनके बीच पाये जाने वाले प्रार्षिक सम्बंधों के ही साकार रूप होते हैं। किसी माल और उसके मालिक में प्रमुख अन्तर यह होता है कि माल दूसरे हरेक माल को खुद अपने मूल्य के अभिव्यक्त होने का रूप मात्र सममता है। माल जन्म से ही हर प्रकार की ऊंच-नीच को बराबर करता चलता है और सर्वया प्रास्थाहीन होता है। वह न केवल अपनी मात्मा का, बल्कि अपने शरीर तक का किसी भी दूसरे माल के साथ विनिमय करने को सवा तैयार रहता है, भले ही वह माल खुब मारितोर्नेस से भी ज्यादा घिनौना क्यों न हो। माल में यथार्य को पहचानने की क्षमता के इस प्रभाव को उस माल का मालिक अपनी पांच या इस से भी अधिक जानेनियों द्वारा पूरा कर देता है। खुद उसके लिये अपने माल का कोई तात्कालिक उपयोग-मूल्य नहीं होता। अन्यथा वह उसे मंडी में लेकर न पाता। उसका दूसरों के लिये उपयोग मूल्य होता है, लेकिन खुद अपने मालिक के लिये उसका केवल यही प्रत्यक्ष उपयोग- मूल्प होता है कि वह विनिमय-मूल्य का भग्गर और इसलिये विनिमय का साधन होता है। चुनांचे, माल का मालिक से कर लेता है कि वह अपने माल का ऐसे मालों से विनिमय करेगा, जिनका उपयोग-मूल्य उसके काम मा सकता है। सभी मालों के बारे में यह बात सच है कि वे अपने मालिकों के लिये उपयोग-मूल्य नहीं होते, और जो उनके मालिक नहीं है, उनके लिये वे उपयोग-मूल्य होते हैं। नाचे, सभी मालों के लिये जरूरी है कि वे एक के हाथ से दूसरे के हाप में जायें। लेकिन एक के हाथ से दूसरे के हाथ में जाना हो तो विनिमय है, और वह विनिमय मूल्यों के रूप में उनका एक दूसरे के साथ सम्बंध स्थापित कर देता है और मालों को संयोग और विच्छेदन में प्रणु सम्बंधी परिवर्तनों के वास्तविक नियमों का अध्ययन करने और उसकी बुनियाद पर निश्चित समस्याओं को हल करने के बजाय “naturalité" ("स्वाभाविकता") और "affinite" ("बंधुता") के “शाश्वत विचारों" की सहायता से पदार्थ के संयोग और विच्छेदन का नियमन करने का दावा करता है? जब हम यह कहते है कि सूदखोरी "justice éternelle" (" ANV48T F414"), "équite éternelle" ("7179947 TRY"), "mutualité éternelle" ("शाश्वत पारस्परिकता") और अन्य “vérites éternelles" " ("शाश्वत सत्यों") के खिलाफ़ जाती है, तब क्या हमें उससे सूदखोरी के बारे में सचमुच कुछ अधिक जानकारी प्राप्त हो जाती है, जो ईसवी सन की पहली शताब्दियों के ईसाई लेखकों की इन उक्तियों से प्राप्त होती कि सूदखोरी "grace éternelle", "foi Eternelle" ("शाश्वत अनुकम्पा", 'शाश्वत विश्वास") पौर "la volonte éternelle de Dieu" ("भगवान की शाश्वत इच्छा") के प्रतिकूल है? 'कारण कि हर वस्तु का दोहरा उपयोग होता है ... एक उपयोग खुद उस वस्तु की विशेषता होता है, दूसरा नहीं; जैसे कि चप्पल पहनी जा सकती है और उसका विनिमय भी किया जा सकता है। ये दोनों चप्पल के ही उपयोग हैं, क्योंकि जो मादमी उस मुद्रा या अनाज के साथ चप्पल का विनिमय करता है, जिसकी उसे जरूरत होती है, वह भी चप्पल का चप्पल के रूप में ही उपयोग करता है। लेकिन वह प्राकृतिक ढंग से उसका उपयोग नहीं करता। कारण कि चप्पल विनिमय करने के लिए नहीं बनायी गयी थी।" (Aristoteles, “DO Republica" [अरस्तू, 'प्रजातंत्र'], बण १, अध्याय ९ ।) 1 1 .
पृष्ठ:कार्ल मार्क्स पूंजी १.djvu/१०४
दिखावट