१०६ पूंजीवादी उत्पादन मुद्रा बन जाने वाले माल का बोहरा उपयोग-मूल्य हो जाता है। माल के रूप में उसका बो विशिष्ट उपयोग-मूल्य होता है (मिसाल के लिये, सोना बात में भरने के काम में माता है और उससे तरह-तरह की विलास की वस्तुएं बनायी जाती है, इत्यादि), उसके अलावा वह एक प्रौपचारिक उपयोग-मूल्य भी प्राप्त कर लेता है, जो उसके बास ढंग के सामाजिक कार्य द्वारा उसमें पैदा हो जाता है। चूंकि तमाम माल मुद्रा के अलग-अलग सम-मूल्य मात्र होते हैं और मुद्रा उनका सार्वत्रिक सम-मूल्य होती है, इसलिये सार्वत्रिक माल के रूप में मुद्रा के सम्बंध में विशिष्ट मालों की भूमिका अदा करते हैं। हम यह देख चुके हैं कि मुद्रा-म केवल एक माल में बाकी सब मालों के मूल्य के सम्बंधों का प्रतिबिम्ब मात्र होता है। इसलिये मुद्रा कामाल होना केवल उन्हीं लोगों के लिये एक नया प्राविष्कार है, वो जब मुद्रा का विश्लेषण करने बैठते हैं, तो उसके पूरी तरह विकसित म से प्रारम्भ करते हैं। मुद्रा में बदल जाने वाले माल को विनिमय-कार्य से अपना मूल्य नहीं, बल्कि विशिष्ट मूल्य-म प्राप्त होता है। इन दो अलग-अलग चीजों को आपस में गड़बड़ा देने का नतीजा यह हुमा है कि कुछ लेखक सोने और चांदी के मूल्य को काल्पनिक समझने लगे हैं। इस बात से कि जहां तक मुद्रा के कुछ साल कानों का सम्बंध है, उसे महब उसके प्रतीकों से . . . 1"Il danaro é la merce universale" [" मुद्रा सार्वत्रिक वाणिज्य-वस्तु होती है"] (Verri, उपर्युक्त रचना, पृ० १६)। ३"सोना और चांदी खुद (जिनको हम कलधौत का सामान्य नाम भी दे सकते हैं). माल होते हैं ... जिनका मूल्य.. घटता-बढ़ता रहता है ... अतः कलधौत का मूल्य उस समय ऊंचा समझा जायेगा, जब उसका अपेक्षाकृत कम वजन देश की कृषि-पैदावार अथवा कल- कारखानों के बने सामान की अपेक्षाकृत अधिक मात्रा खरीद सकेगा," इत्यादि । ("A Discourse of the General Notions of Money, Trade, and Exchanges, as They Stand in Relation each to other." By a Merchant. ["मुद्रा, व्यापार तथा विनिमय के सामान्य विचारों एवं उनके पारस्परिक सम्बंधों के विषय में एक निबन्ध ।' एक व्यापारी द्वारा लिखित ।] London, 1695, पृ. ७।) "हालांकि सोना और चांदी- चाहे वे सिक्के के रूप में हों या न हों, -दूसरी तमाम वस्तुओं के मापदण्ड के रूप में इस्तेमाल किये जाते है, फिर भी वे माल ही होते हैं-ठीक उसी तरह, जैसे शराब, तेल, तम्बाकू, कपड़ा या और सामान माल होता है।' ("A Discourse concerning Trade, and that in particular of the East Indies,” etc. [ व्यापार के विषय में, खास तौर पर ईस्ट इण्डीज के व्यापार के विषय में एक निबन्ध,' इत्यादि], London, 1689, पृ० २ ।) "राज्य के स्टाक तथा धन को मुद्रा तक ही सीमित कर देना उचित नहीं है, और न ही सोने और चांदी को वाणिज्य-वस्तुओं की श्रेणी के बाहर रखा जा सकता है।" ("The East-India Trade a Most Profitable Trade" ["ईस्ट इण्डिया का व्यापार सबसे अधिक लाभदायक व्यापार है'], London, 1677, पृ. ४।) 8 (“L'oro e lárgento hanno valore come metalli anteriore all'esser moneta" ["सोने और चांदी में मुद्रा होने के पहले धातुओं के रूप में मूल्य होता है"] (Galiani उप. पु.), लॉक ने कहा है : "चांदी को उसके उन गुणों के कारण, जिनसे वह मुद्रा बनने के योग्य हो गयी थी, मनुष्य-जाति की सार्वत्रिक सम्पति से 19 .
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