पृष्ठ:कार्ल मार्क्स पूंजी १.djvu/१११

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१०८ पूंजीवादी उत्पादन . . अन्तर्गत वस्तुओं द्वारा धारण किये गये सामाविक म, अथवा मन के सामानिक गुणों के भौतिक म, प्रतीक मात्र होते हैं, वहां उती सांस में हमसे यह भी कहा जाता है कि येस मनमानी कपोल-कल्पना मात्र हैं, जिनको मनुष्य-जाति की तथाकषित सार्वजनिक सम्मति से मान्यता मिल गयी है। प्रारहवीं सदी में जिस उंग की व्याख्या का चलन था, उसके साथ यह बात मेल खाती थी। मनुष्य के साथ मनुष्य के सामाजिक सम्बंधों ने दिमाग को उलझन में डाल देने वाले जो स्म धारण कर लिये, लोग बब उनकी उत्पत्ति का कोई कारण नहीं बता पाते थे, तब वे उनका कोई रूढ़िगत कारण बताकर उनके विचित्र स्वरूप को खतम कर देने की कोशिश करते थे। यह पहले ही बताया जा चुका है कि किसी भी माल के सम-मूल्य रूम का अर्थ यह नहीं होता कि उसके मूल्य का परिमान भी निर्धारित हो गया है। इसलिये हम भले ही यह जानते हों कि सोना महा होता है और पुनर्माचे दूसरे सभी मालों से उसका सीधा विनिमय किया जा सकता है, फिर भी इस बात से हमें इसका कोई मान नहीं होता कि, मिसाल के लिये, पॉर सोने की कितनी कीमत है। दूसरे प्रत्येक माल की भांति सोना भी अपने मूल्य के परिमाण को दूसरे मालों से अपनी तुलना द्वारा ही व्यक्त कर सकता है। यह मूल्य सोने के उत्पादन के लिये पावश्यक मम-काल द्वारा निर्धारित होता है, और वह व्यक्त होता है अन्य किसी भी माल के उस परिमाण के परिये, जिसके उत्पादन में उतना ही अम-काल लगा हो।' ... plait et bon nous semble." [" इस बात में कोई तनिक भी सन्देह नहीं कर सकता और न उसे करना चाहिये कि मुद्राओं का व्यवसाय, वास्तविकता, अवस्था, व्यवस्था और मधिनियम .. केवल हमारे क्षेत्र में और हमारे राज्याधिकार के क्षेत्र में पाते हैं; और यह हमारी इच्छा पर निर्भर करता है कि हम मुद्रामों को जितना उचित समझें , उतना चला दें, और उनका जितना ठीक समझें , उतना दाम रखें।"] रोमन कानून का यह एक बुनियादी सिद्धान्त था कि मुद्रा का मूल्य सम्राट् के आदेश के जरिये निश्चित किया जाता था। मुद्रा को माल मानने pret Harent H I “Pecunias vero nulli emere fas erit, nam in usu"publico con- stitutas oportet non esse mercem." ["मुद्रा खरीदने का किसी को कोई अधिकार नहीं है, क्योंकि मुद्रा सार्वजनिक उपयोग के लिये होती है और इसलिये उसको वाणिज्य-वस्तु बना देना उचित नहीं है।"] इस प्रश्न पर जी. एफ. पागनीनी (G. E. Pagnini) ने कुछ अच्छा काम किया है। देखिये उनकी रचना "Saggio sopra il giusto pregio delle cose, 1751", Custodi के “Parte Moderna", ग्रंथ २, में । अपनी रचना के दूसरे भाग में पागनीनी ने वकीलों की खास तौर पर खबर ली है। "यदि कोई भादमी, जितने समय में वह एक बुशेल अनाज पैदा कर सकता है, उतने ही समय में पेरू की धरती से एक प्रॉस चांदी निकालकर लन्दन ला सकता है, तो एक बुशेल अनाज और एक प्रॉस चांदी एक दूसरे के स्वाभाविक दाम है। अब नयी अथवा पहले से मच्छी बानों के खुल जाने के कारण कोई पादमी यदि पहले जैसी मासानी के साथ एक के बजाय दो मॉस चांदी हासिल कर सकता है, तो caeteris paribus (अन्य बातें समान होने पर) अनाज दस शिलिंग फी बुशेल के भाव पर भी उतना ही सस्ता रहेगा, जितना सस्ता वह पहले पांच शिलिंग फ्री बुशेल के भाव पर था।" (William Petty, "A Treatise of Taxes and Contributions" [विलियम पेटी, 'करों और अनुदानों पर एक निबंध'], London, 1667, पृ. ३२) - .