११० पूंजीवादी उत्पादन ही तत्काल समस्त मानव-मम का प्रत्यक्ष अवतार बन जाती है। इसी से महा का जादू पैदा होता है। समाज के जिस रूप पर हम विचार कर रहे हैं, उसमें उत्पादन की सामाजिक प्रक्रिया के दौरान में मनुष्यों का व्यवहार विशुद्ध परमाणुओं जैसा होता है। इसलिये उत्पादन के दौरान में एक दूसरे के साथ उनके बीच को सम्बंध स्थापित होते हैं, वे एक ऐसा भौतिक स्वरूप धारण कर लेते हैं, जो उनके अपने नियंत्रण से तथा उनके सचेतन व्यक्तिगत कार्य-कलाप से स्वतंत्र होता है। ये बातें पहले इस रूप में प्रगट होती हैं कि मम से पैदा होने वाली वस्तुएं सामान्यतया मालों का रूप धारण कर लेती हैं। हम यह देख के हैं कि माल पैदा करने वालों का समाज जब उत्तरोत्तर विकास करता है, तब वह किस तरह एक विशेष माल पर मुद्रा की छाप अंकित कर देता है। इसलिये मुद्रा की पहेली असल में मालों की ही पहेली है। अब वह केवल अपने सबसे स्पष्ट रूप में हमारे सामने पायी है।
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