मुद्रा, या मालों का परिचलन ११३ के रूप में मालों के मूल्य को अभिव्यक्त करना क्योंकि महा एक भावगत कार्य है, अतः हम उसके लिए काल्पनिक, अथवा भावगत, मुद्रा का भी प्रयोग कर सकते हैं। हर व्यापारी मानता है कि अपने माल का मूल्य राम के रूप में या किसी काल्पनिक मुद्रा केस में व्यक्त करके ही वह उसे मुद्रा में बदलने में कामयाब नहीं हो पाता,-बह तो तब भी बहुत दूर की बात रहती है। हर व्यापारी यह भी जानता है कि लाखों और करोड़ों पार की कीमत के सामान के मूल्य का सोने के रूप में अनुमान लगाने के लिए उसे वास्तविक सोने के बरा से दुकड़े की भी मावस्यकता नहीं पड़ती। इसलिए मुद्रा अब मूल्य की माप का काम करती है, तब वह केवल काल्पनिक, अपवा भावगत, मुद्रा के रूप में इस्तेमाल की जाती है। इसके फलस्वरूप हब से यादा मजीबोगरीब सिद्धान्त प्रस्तुत किये गये हैं। लेकिन मूल्य की माप का काम करने वाली मुद्रा हालांकि केवल भावगत मुद्दा होती है, फिर भी वाम सर्वथा उस वास्तविक पदार्थ पर ही निर्भर करता है, वो मुद्रा कहलाता है। एक टन लोहे में बो मूल्य, परवा मानव-श्रम की जितनी मात्रा, निहित है, वह कल्पना में मुद्रा-माल के एक ऐसे परिमाण के द्वारा व्यक्त की जाती है, जिसमें लोहे के बराबर मम निहित होता है। इसलिए जब मूल्य की माप का काम सोना करेगा पौर जब यह काम चांदी करेगी या तांबा करेगा, तब हर बार एक टन लोहे का मूल्य बहुत ही भिन्न दामों में व्यक्त किया जायेगा, या यूं कहिये कि उसका नाम इन बातुओं के क्रमशः बहुत भिन्न परिमाणों द्वारा व्यक्त किया जायेगा। इसलिए यदि एक समय में दो अलग-अलग माल, जैसे सोना और चांदी, मूल्य की माप का काम करते हैं, तो तमाम मालों के दो नाम होते है- एक सोने वाला नाम और दूसरा चांदी वाला बाम। अब तक सोने के मूल्य के साथ चांदी के मूल्य का अनुपात नहीं बदलता,- मिसाल के लिए, जब तक कि वह १५:१ पर स्थिर पर रहता है, -तब तक ये दोनों प्रकार के म चुपचाप साथ-साथ चलते रहते हैं। पर उनके अनुपात में होने वाला प्रत्येक परिवर्तन मालों के सोने वाले वामों और पांवी वाले नामों के अनुपात को गड़बड़ा देता है और इस तरह - . . - . . ये और चाटने के बाद मानो समझते थे कि सौदा सन्तोषजनक ढंग से हो गया है।" इसी तरह पूर्वी एस्किमो जाति के लोग भी विनिमय में मिलने वाली वस्तुओं को चाटा करते थे। यदि उत्तर में, इस तरह, जीभ वस्तुओं पर अपना स्वामित्व स्थापित करने के साधन की तरह इस्तेमाल की जाती थी, तो कोई पाश्चर्य नहीं कि दक्षिण में संचित सम्पत्ति के स्पष्टीकरण का काम पेट से लिया जाता है और काफ़िर जाति के लोग मादमी के पेट का प्राकार देखकर उसकी दौमत का अनुमान लगाते हैं। काफ़िर लोग समझ-बूझकर ही यह करते है, इसका सबूत यह है कि ठीक उसी समय, जब १८६४ की ब्रिटिश स्वास्थ्य रिपोर्ट ने इस तथ्य पर प्रकाश गला था कि मजदूर-वर्ग के अधिकतर भाग को परवी बनाने वाले बाब-पदार्थ पर्याप्त मात्रा में नहीं मिलते, तब ग. हार्वे नामक एक व्यक्ति (वेशक रक्त-परिचलन के विख्यात प्राविष्कारक हार्वे से भिन्न व्यक्ति) ने पूंजीपति-वर्ग और अभिजात वर्ग के लोगों की फालतू परवी घटाने के नुसनों का विज्ञापन करके पूर हाथ रंगे थे। iafort Karl Marx. "Zur Kritik, &c.". "Theorien oon der Masseinheit des Geldesh (कार्ल मार्स , 'पशास्त्र की समीक्षा का एक प्रयास'। 'मुद्रा की माप की इकाई के सिद्धान्त'), पृ. ५३ मोर उसके मागे के पृष्ठ । &-45
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