१३. पूंजीवादी उत्पादन मानों का एक तीसरा मालिक विक्रेता के रूप में घटनास्थल पर पाकर उपस्थित हो . . किसी भी माल के स्पान्तरण में वो दो, एक दूसरे की उल्टी अवस्थाएं शामिल होती है, उनको यदि जोड़ दिया जाये, तो एक वृत्ताकार गति, अपवा एक परिपथ बन जाता है: पहले माल-प, फिर उस प का परित्याग और अन्त में फिर माल-रूप में लोट जाना। इसमें सन्देह नहीं कि माल यहां दो भिन्न-भिन्न स्वरूपों में सामने पाता है। प्रस्थान-बिन्तु पर वह अपने मालिक के लिए उपयोग-मूल्य नहीं होता, समाप्ति-बिन्नु पर वह उपयोग-मूल्य होता है। इसी प्रकार मुद्रा पहली अवस्था में मूल्य के ठोस स्फटिक के रूप में सामने पाती है, जिसमें माल बड़ी उत्सुकता के साथ बदल जाता है, और दूसरी अवस्था में वह महब अस्थायी सम- मूल्य के रूप में घुलकर रह जाती है, जिसका स्थान बाद में कोई उपयोग मूल्य ले लेता है। जिन दो रूपान्तरणों से मिलकर यह परिपत्र तैयार होता है, साथ ही साथ दो अन्य मालों के उल्टे और प्रांशिक रूपान्तरण भी होते हैं। एक ही माल (कपड़ा) खुद अपने स्मान्तरणों का कम प्रारम्भ करता है और साथ ही एक दूसरे माल (गेहूं) के पान्तरण को पूरा भी कर देता है। पहली अवस्था में, यानी बिक्री में, कपड़ा ये दोनों भूमिकाएं खुद अपने शरीर द्वारा सम्पन्न करता है। लेकिन उसके बाद सोने में बदल जाने पर वह अपना दूसरा और अन्तिम रूपान्तरण पूरा करता है और साथ ही एक तीसरे माल का पहला रूपान्तरण सम्पन्न कराने में मदर देता है। नांवे अपने स्मान्तरणों के दौरान में कोई भी माल जिस परिपप से गुजरता है, वह अन्य मामलों के परिपषों से इस तरह उलझा रहता है कि उसे उनसे अलग नहीं किया जा सकता। तमाम अलग-अलग परिपषों का कुल मोड़ मालों का परिचलन कहलाता है। मालों का परिचलन पैदावार के प्रत्यन विनिमय (प्रवला-बवली) से न केवल रूप में, बल्कि सारतत्व में भी भिन्न होता है। घटनाओं के क्रम पर एक नबर गल कर देखिये, बात साफ हो जायेगी। सच पूछिये, तो बुनकर ने अपने कपड़े का विनिमय बाइबल से किया है, यानी उसने अपना माल किसी और के माल से बदल लिया है। लेकिन यह बात केवल वहीं तक सच है, जहां तक खुब उसका अपना सम्बंध है। जिसने बाइबल बेची है, उसे कोई ऐसी चीज चाहिए जो उसके दिल को घोड़ी गरमाहट पहुंचा सके। जिस प्रकार हमारे बुनकर को यह मालूम नहीं था कि उसके कपड़े का साप विनिमय हुमा है, उसी प्रकार बाइबल बेचने वाले को अपनी बाइबल का कपड़े के साथ विनिमय करने का तनिक भी खयाल न पा। 'क' के माल का स्थान 'ब' का माल ले लेता है। लेकिन 'क' और 'ब' जर इन मालों का विनिमय नहीं करते। बेशक यह भी मुमकिन है कि 'क' और 'ब' एक ही समय में पोर एक दूसरे से खरीदारी कर गलें, पर इस प्रकार के सौवे अपवाद-स्वम्म होते हैं, मालों के परिचालन की सामान्य परिस्थितियों का अनिवार्य परिणाम कदापि नहीं होते। यहां हम एक मोर यह देखते हैं कि किस प्रकार मालों का विनिमय उन तमाम स्थानीय एवं व्यक्तिगत - 1«Il y a donc quatre termes et trois cotractants, dont l'un intervient deux fois" ["प्रतएव, इसमें ... चार चरमावस्थाएं और सौदा करने वाले तीन पक्ष होते हैं, जिनमें से एक पक्ष दो बार हस्तक्षेप करता है"] (Le Trosne, उप० पु०, पृ. ९०९)।
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