मुद्रा, या मालों का परिचलन १३१ . बंधनों को तोड़ गलता है, जो प्रत्यक्ष विनिमय के साथ अनिवार्य रूप से बड़े होते हैं, और सामाजिक बम की पैदावार के परिचलन को विकसित करता है, और दूसरी मोर हम यहां यह देखते हैं कि किस प्रकार मालों का विनिमय ऐसे सामाजिक सम्बंधों का एक पूरा जाल तैयार कर गलता है, जो स्वयंस्फूर्त ढंग से विकसित होते हैं और नाटक के पात्रों के नियंत्रण से सर्वथा स्वतंत्र रहते हैं। क्योंकि किसान ने अपना गेहूं बेच गला है, इसीलिए बुनकर अपना कपड़ा बेच पाता है। हमारा बह वाडी-प्रेमी यदि अपनी बाइबल बेच पाता है, तो केवल इसीलिये कि बुनकर ने अपना कपड़ा बेच गला है; और शराब बनाने वाला परि अपनी बीवन-शायिनी सुरा बेच पाता है, तो केवल इसीलिये कि हमारे ग्राण्डी-प्रेमी ने अपनी अमरत्व बापिनी पुस्तक (eau-de-vie) बेच गली है। और इसी तरह कम मागे बढ़ता जाता है। अतएव, परिचलन की प्रक्रिया, पैदावार के प्रत्यक्ष विनिमय की तरह, उपयोग-मूल्यों के स्थानांतरित और हस्तांतरित होने पर समाप्त नहीं हो जाती। किसी एक माल के रूपान्तरण के परिपथ से बाहर निकल जाने पर मुद्रा गायब नहीं हो जाती। उसका तो लगातार परिचालन के क्षेत्र के उन नये स्थानों में अवक्षेपण होता रहता है, जिनको दूसरे माल खाली कर जाते है। मिसाल के लिए, कपड़े के सम्पूर्ण रूपन्तरण में, यानी कपड़ा-मुद्रा-बाइबल में, पहले कपड़ा परिचलन के बाहर चला जाता है और उसका स्थान मुद्रा ले लेती है, फिर बाइबल परिचलन के बाहर चली जाती है और एक बार फिर मुद्रा उसका स्थान ले लेती है। जब कोई माल किसी दूसरे माल का स्थान ले लेता है, मुद्रा-माल सदा किसी तीसरे व्यक्ति के हाथों में बना रहता है।' परिचलन के प्रत्येक रंध्र से मुद्रा पसीने की तरह बाहर निकलती रहती है। कठमुल्लों के इस सूत्र से अधिक बचकानी बात और कोई नहीं हो सकती कि हर विकी क्योंकि खरीद होती है और हर खरीब बिकी होती है, इसलिए मालों के परिवलन का लाजिमी तौर पर यह मतलब है कि विक्रियों और खरीदारियों का सदा संतुलन रहता है। यदि इस सूत्र का यह पर्व है कि वास्तव में जितनी विक्रिया होती है, उनकी संख्या सदा खरीदारियों की संस्था के बराबर रहती है, तो यह केवल एक पुनरुक्ति है। किन्तु इस सूत्र का वास्तविक उद्देश्य तो यह सिद्ध करना है कि हर बेचने वाला अपने खरीदार को साथ लेकर मन्दी में माता है। ऐसा कुछ नहीं होता। माल के मालिक और मुद्रा के मालिक के बीच, यानी दो ऐसे व्यक्तियों के बीच, जो एक दूसरे के वैसे ही विरोधी होते हैं, जैसे मानातील के दो ध्रुव, विक्री करना और खरीदना दोनों एक ही कार्य-यानी विनिमय-होते हैं। जब अकेला एक ही व्यक्ति बेचता भी है और जरीवता भी है, तब वे को अलग-अलग कार्य होते हैं, जिनका स्वरूप दो ध्रुवों की भांति एक दूसरे का विरोधी होता है। प्रतएव विक्री और खरीद के एकाकार होने का मतलब यह है कि माल यदि परिचलन के कीमियाई भमके में गले जाने पर मुद्रा के रूप में फिर बाहर नहीं निकल पाता,-दूसरे शब्दों में, यदि माल का मालिक उसे बेच नहीं पाता और इसलिये यदि मुद्रा का मालिक उसे खरीब नहीं पाता,-तो माल बेकार होता है। विकी और खरीद के एकाकार होने का, इसके अलावा, यह भी मतलब है कि यदि विनिमय हो जाता है, तो वह के जीवन में विधाम का क्षण या प्रव का वीर्ष अथवा अल्प - यह बात स्वतःस्पष्ट भले ही हो, पर फिर भी अर्थशास्त्री और विशेष कर स्वतंत्र व्यापार के अधकचरे समर्थक (Free-trader Vulgaris) उसे प्रायः अनदेखा कर जाते हैं। 9.
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