१३२ पूंजीवादी उत्पादन काल होता है। किसी भी माल का पहला रूपान्तरण कि एक साप विकी और खरीब दोनों होता है, इसलिये वह अपने में एक स्वतंत्र किया होता है। परीवार के पास पब माल होता है, देचने वाले के पास मुद्रा, अर्थात् उसके पास एक ऐसा माल होता है, जो किसी भी क्षण परिचलन में प्रवेश करने को तैयार है। जब तक कि कोई दूसरा पावनी जारीबता नहीं, तब तक कोई नहीं बेच सकता। लेकिन सिर्फ इसलिये कि किसी प्रावमी में अमी-पनी कोई चीन बेची है, उसके लिये यह बकरी नहीं हो जाता कि वह फौरन कुछ परीब भी गले। प्रत्यक्ष विनिमय समय, स्थान और व्यक्तियों के जितने बंधन लागू करता है, परिचलन उन सब को तोड़ गलता है। यह काम वह प्रत्यन विनिमय के अन्तर्गत अपनी पैदावार को हस्तांतरित करने और किसी और व्यक्ति की पैदावार को प्राप्त करने के बीच जो प्रत्यक्ष एकात्म्य होता है, उसे भंग करके तथा एक बिक्री और एक खरीद के परस्पर विरोधी स्वरूप में बदलकर सम्पन्न करता है। यह कहना कि इन दो स्वतंत्र और परस्पर विरोधी कार्यों के बीच एक पान्तरिक एकता होती है और वे बुनियादी तौर पर एक होते हैं,-यह तो यह कहने के समान है कि यह पान्तरिक एकता एक बाहरी विरोष में व्यक्त होती है। यदि किसी माल के सम्पूर्ण रूपान्तरण की दो पूरक अवस्वानों के बीच के समय का अन्तर बहुत लम्बा हो जाता है, पानी पनि बिक्री पर खरीद का सम्बर-विच्छेद बहुत उप प धारण कर लेता है, तो उनके बीच पाये जाने वाला अन्तरंग सम्बंध, उनकी एकता संकट पैदा करके अपनी सत्ता का प्रदर्शन करती है। उपयोग-मूल्य और मूल्य का विरोष; यह विरोष कि मिनी श्रम को लादिमी तौर पर प्रत्यक्षा सामाजिक श्रम की तरह प्रकट होना पड़ता है और मन के एक विशिष्ठ, प्रकार को प्रमूर्त मानव-मन के रूप में सामने पाना पड़ता है। यह विरोष कि बस्तुमों का व्यक्तिकरण हो जाना और वस्तुओं द्वारा व्यक्तियों का प्रतिनिधित्व-ये सारे विरोष और पतिकम, जो मालों में निहित होते हैं, माल के पान्तरण की परस्पर विरोधी प्रस्थानों में अपना बोर दिलाते है और अपनी गति के रूपों को विकसित करते हैं। प्रतएव, इन मों का पर्व संकट की संभावना है, और संकट की संभावना से अधिक उनका कुछ पर्व नहीं है। दो मात्र सम्भावना है, यह वास्तविकता बनती है कुछ ऐसे सम्बंधों के एक लम्बे कम के फलस्वरम, बिनका मालों के साधारण परिचलन के हमारे वर्तमान दृष्टिकोन में अभी कोई अस्तित्व नहीं है। . 1"Zur Kritik der Politischen Oekonomie" ('पर्यशास्त्र की समीक्षा का एक प्रयास') में पृ० ७४-७६ पर जेम्स मिल के सम्बंध में मेरी टिप्पणियों को देखिये। जहां तक इस विषय का ताल्लुक है, वर्तमान प्रार्षिक व्यवस्था की सफाई पेश करने वाला अर्थशास्त्र खास तौर पर दो तरीके इस्तेमाल करता है। एक तो वह मालों के परिचलन और पैदावार के प्रत्यक्ष विनिमय के अन्तरों को अनदेखा करके दोनों को एक में मिला देता है। दूसरे, वह उत्पादन की पूंजीवादी प्रणाली में लगे हुए व्यक्तियों के सम्बंधों को मालों के परिचलन से पैदा होने वाले सरल सम्बंधों में परिणत करके पूंजीवादी उत्पादन के विरोधों को रफा-दफा कर देता है। लेकिन मालों का उत्पादन पौर परिचलन ऐसी बातें है, जो न्यूनाधिक रूप से बहुत ही भिन्न प्रकार की उत्पादन-प्रणालियों में पायी जाती है। यदि हम उत्पादन की इन सभी प्रणालियों में समान रूप से पायी जाने वाली परिचलन की इन प्रमूर्त परिकल्पनाओं के सिवा पौर किसी चीज से परिचित नहीं है, तो सम्भवतः हम यह कतई नहीं जान सकते कि इन .
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