पृष्ठ:कार्ल मार्क्स पूंजी १.djvu/१४२

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मुद्रा, या मालों का परिचलन १३६ स्वर्ण-सिक्कों की एक निश्चित संख्या को परिचलन से अलग करने के लिये केवल इतना करना ही काफी है कि एक-एक पौड के नोट उसी संख्या में परिचलन में गल दिये जायें। सभी बैंकर यह तरकीब अच्छी तरह जानते हैं। जिस प्रकार सामान्य रूप में मुद्रा का चलन मालों के परिचलन का-या मालों को जिन परस्पर विरोधी रूपान्तरणों में से गुजरना पड़ता है, उनका-प्रतिविम्ब मात्र होता है, उसी प्रकार मुद्रा के चलन का वेग मालों के रूप परिवर्तन की तेजी का प्रतिबिम्ब होता है, वह रूपान्तरणों के एक क्रम के दूसरे कम के साथ लगातार गुंथे रहने का, पदार्य के जल्दी-जल्दी होने वाले सामाजिक विनिमय का, परिचलन के क्षेत्र से मालों के शीघ्रता के साथ गायब हो जाने और उतनी ही शीघ्रता के साथ उनके स्थान पर नये मालों के मा जाने का प्रतिबिम्ब होता है। प्रतएव, चलन के वेग में हम परस्पर विरोधी एवं पूरक अवस्थानों को प्रवाहमान एकता-मालों के उपयोगी स्वरूप के उनके मूल्य-स्वरूप में बदले जाने और उनके मूल्य-स्वरूप के फिर से उपयोगी स्वरूप में बदले जाने की एकता, या यूं कहिये कि उसमें हम विक्रय और क्रय की दो क्रियानों की एकता को देखते हैं। दूसरी पोर, चलन का धीमा पर जाना इस बात का प्रतिविम्ब होता है कि ये दोनों क्रियाएं परस्पर विरोधी प्रवस्थानों में अलग-अलग बंट गयी है; वह रूप के परिवर्तन में और इसलिये पदार्थ के सामाजिक विनिमय में ठहराव मा जाने का प्रतिबिम्ब होता है। खुब परिचलन से, जाहिर है, इसका कोई पता नहीं चलता कि यह व्हराव क्यों मा गया है। उससे तो केवल इस घटना का प्रमाण मिलता है। साधारण जनता मुद्रा के चलन के धीमे पड़ने के साथ-साथ यह देखती है कि परिचलन के परिपष पर मुद्रा पहले की अपेक्षा कम जल्दी-जल्दी प्रकट होती है और गायब होती है, और इसलिये वह स्वभावतया यह समानती है कि बलन का वेग चालू माध्यम की मात्रा में कमी पा जाने के कारण धीमा पड़ गया है।' 10 1 'मुद्रा चूंकि... खरीदने और बेचने की सामान्य रूप से माप है, इसलिये हर वह मादमी, जिसके पास बेचने के लिये कोई चीज है और जिसे अपनी चीज बेचने के लिये ग्राहक नहीं मिलते , वह शीघ्र ही यह सोचने लगता है कि राज्य में अथवा देश में मुद्रा की कमी हो गयी है जिसके कारण उसका सामान नहीं विक पा रहा है, और चुनांचे सब मुद्रा की कमी को रोना शुरू कर देते हैं, जो कि बहुत बड़ी गलती है ... ये लोग, जो मुद्रा के लिये चीख रहे है, ये क्या चाहते है ?.. काश्तकार शिकायत करता है ... उसका खयाल है कि यदि देश में थोड़ी और मुद्रा होती, तो उसके सामान का भी उसे कोई दाम मिल जाता। इससे पता लगता है कि मानो काश्तकार को मुद्रा की नहीं, बल्कि अपने अनाज और ढोर के लिए, जिसे वह बेचना चाहता है, पर बेच नहीं पाता, वाम की जरूरत है .. उसे क्यों नहीं मिलते?... (१) या तो इसलिए कि देश में बहुत ज्यादा अनाज और ढोर हो गये है, जिसके फलस्वरूप जो लोग मण्डी में जाते हैं, उनमें से ज्यादातर बेचना चाहते हैं और खरीदना बहुत कम लोग चाहते है, या (२) परिवहन के द्वारा विदेशों को सामान भेजने की सुविधा नहीं है ...; और या (३) चीजों की खपत कम हो गयी है, जैसा कि उस बात होता है, जब लोग गरीबी के कारण अपने घरों में उतना बर्च नहीं करते, जितना के पहले किया करते थे। मतलब यह कि विशिष्ट मुद्रा में वृद्धि हो जाने से कास्तकार के सामान की बिक्री में कोई भी मवध न होगी। उसकी मदद के लिए इन तीनों दाम