१३८ पूंजीवादी उत्पादन 9 , ये परस्पर विरोधी और पूरक अवस्थाएं, जिनके गोड़ से स्पान्तरण की क्रिया बनती है, एक साथ नहीं, बल्कि एक के बाद एक के क्रम में पाती है। चुनाचे कम को पूरा करने के लिये समय की अावश्यकता होती है। इसलिये मुद्रा के चलन का वेग इस बात से मापा जाता है कि किसी निश्चित समय में मुद्रा का कोई खास टुकड़ा या सिक्का कितनी बार गतिमान होता है। मान लीजिये कि ४ वस्तुओं के परिचलन में एक दिन लग जाता है। दिन भर में जिन वामों को मूर्त रूप दिया जाना है, उनका जोड़ ८ पौड है, मुद्रा के दो टुकड़े ४ बार गतिमान होते हैं और परिचलन में भाग लेने वाली मुद्रा की मात्रा २ पौण्ड है। चुनाचे परिचलन की क्रिया के दौरान में एक निश्चित काल में निम्नलिखित सम्बंध हमारे सामने पाता है : चालू माध्यम का काम करने वाली मुद्रा की मात्रा उस रकम के बराबर होती है, जो मालों के नामों के बोर्ड को एक ही अभियान के सिक्कों के गतिमान होने की संख्या से भाग देने पर मिलती है। यह नियम सामान्य रूप से लागू होता है। किसी खास देश में एक निश्चित समय के भीतर मालों के कुल परिचलन में एक मोर तो वे अनेक अलग-अलग और एक साथ होने वाले प्रांतिक परिवर्तन शामिल होते हैं, जो विक्रय भी होते हैं और साथ ही क्रय भी और जिनमें प्रत्येक सिक्का केवल एक बार अपना स्थान बदलता है, या केवल एक बार गतिमान होता है, और, दूसरी पोर, उसमें रूपान्तरणों के वे अलग-अलग कम शामिल होते हैं, वो कुछ हद तक साथ-साथ चलते हैं और कुछ हर तक मापस में गुंग जाते हैं और जिनमें प्रत्येक सिक्का कई-कई बार गतिमान होता है, और गतिमान होने की संख्या परिस्थितियों के अनुसार कम या ज्यादा होती है। यदि एक अभियान के चालू सिक्कों के गतिमान होने की कुछ संख्या मालूम हो, तो हम यह पता लगा सकते है कि उस अभियान का एक सिक्का मौसतन कितनी बार गतिमान होता है, या यूं कहिये कि हम मुद्रा के चलन के प्रोसत बेग का पता लगा सकते हैं। प्रत्येक दिन के शुरू में कितनी मुद्रा परिचलन में डाली जाती है, यह, बाहिर है, इस बात से निर्धारित होता है कि परिचलन में साथ-साथ भाग लेने वाले तमाम मालों के नामों का कुल चोड़ क्या है। लेकिन एक बार परिचलन में मा जाने पर सिक्के मानों एक दूसरे के लिये जिम्मेवार बना दिये जाते हैं। यदि एक सिक्का अपना बेग बढ़ा देता है, तो दूसरा या तो अपना बेग कम कर देता है और या परिचलन के एकदम बाहर चला जाता है। कारण कि परिचलन में सोने की केवल उतनी ही मात्रा सप सकती है, जो एक अकेले सिक्के, अपवा तत्व, के गतिमान होने की पोसत संस्था से गुना करने पर उन नामों के गोड़ के बराबर होती है, जिनको मूर्त रूप दिया जाना है। पुनांचे यदि अलग-अलग सिक्कों के गतिमान होने की संख्या बढ़ जाती है, तो परिचलन में भाग लेने वाले सिक्कों की कुल संस्था घट जाती है। यदि गतिमान होने की संभया कम हो जाती है, तो सिक्कों की कुल संख्या बढ़ जाती है। चूंकि बलन के एक खास प्रोसत बेग के रहते हुए यह निश्चित होता है कि परिचलन में मुद्रा की कितनी मात्रा सपेगी, इसलिये सावरन नामक . 1 . sans sarreter un instant." ["श्रम से उत्पन्न वस्तुएं उस (मुद्रा) में गति का संचार करती है और उसे एक हाथ से दूसरे हाथ में घुमाती है ... उस (मुद्रा) की गति की तेजी उसकी माता की कमी को पूरा कर सकती है। पावश्यकता होने पर वह एक क्षण के लिये भी कहीं नहीं रुकती और बराबर एक हाथ से दूसरे हाथ में घूमती जाती है।"] (Le Trosne, उप. पु०, पृ. ९१५, ९१६) -
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