मुद्रा, या मालों का परिचलन १४१ या बशर्ते कि मुद्रा के चलन के बेग में उसी अनुपात में कमी मा नाये। परि दामों में होने बाली कमी की तुलना में मालों की संख्या बल्बी से बढ़ती है या मुद्रा के चलन का वेग जल्दी से कम होता है, तो बालू माध्यम की मात्रा बढ़ जायेगी। अलग-अलग तत्वों में होने वाले परिवर्तन एक दूसरे के प्रभाव को क्षतिपूर्ति कर सकते हैं। ऐसा होने पर, उनके लगातार अस्थिर रहते हुए भी, जिन दामों को मूर्त रूप दिया जाना है, उनका जोड़ और परिचलन में लगी मुद्रा की मात्रा स्थिर रहती है। चुनावे, खास तौर पर यदि हम लम्बे कालों पर विचार करें, तो हम पाते हैं कि किसी भी देश में बालू मुद्रा की मात्रा में हम उसके पोसत स्तर में जितना अन्तर होने की उम्मीद करते थे, वास्तव में उससे बहुत कम अन्तर रहता है। पर जाहिर है कि प्रौद्योगिक एवं व्यापारिक संकटों से या फिर, जैसा कि बहुत कम होता है, मुद्रा के मूल्य में होने वाले उतार-चढ़ाव से जो जबर्दस्त गड़बड़ पैदा हो जाती है, वह और बात है। इस नियम को कि चालू माध्यम की मात्रा चालू मालों के नामों के जोड़ और चलन के मौसत वेग से निर्धारित होती है। इस तरह भी पेश किया जा सकता है कि यदि मालों के 1"किसी भी कौम के व्यापार को चालू रखने के लिए आवश्यक मुद्रा की एक ऐसी खास मात्रा और अनुपात होता है, जिसके कम या ज्यादा होने पर व्यापार में गड़बड़ी पैदा हो जाती है। यह ठीक उसी तरह की बात है, जैसे छोटे पैमाने के फुटकर व्यापार में चांदी के सिक्कों को भुनाने के लिए और ऐसा हिसाब साफ़ करने के लिए, जो छोटे से छोटे चांदी के सिक्कों से भी ठीक नहीं बैठता, एक निश्चित अनुपात में फार्मिंग सिक्कों की आवश्यकता होती है... अब जिस तरह व्यापार के लिए मावश्यक फ़ादिंग सिक्कों की संख्या इस बात से ते होती है कि लोगों की कितनी संख्या है, वे कितनी जल्दी-जल्दी विनिमय करते हैं, और साथ ही मुख्यतया इस बात से कि चांदी के छोटे से छोटे सिक्कों का क्या मूल्य है, उसी तरह हमारे व्यापार के लिए पावश्यक मुद्रा (सोने और चांदी के सिक्कों) का अनुपात इस बात पर निर्भर करता है कि विनिमय कितनी जल्दी होते हैं और भुगतान की रकमें कितनी बड़ी होती है।" (William Petty, “A Treatise of Taxes and Contributions" [विलियम पेटी, 'करों और अनुदानों पर एक निबंध'], London, 1667 पृ० १७।) ० स्टुअर्ट प्रादि के हमलों के मुकाबले में पूम के सिद्धान्त का समर्थन म० यंग ने अपनी रचना "Political Ari- thmetic" ['राजनीतिक गणित"], London, 1774, में किया था, जिसमें पृ० ११२ पौर उसके मागे के पृष्ठों पर “Prices depend on quantity of money" ["दाम मुद्रा की मात्रा पर निर्भर करते है'] शीर्षक एक विशेष अध्याय है। मैंने "Zur Kritik der Politischen Dekonomie" ['अर्थशास्त्र की समीक्षा का एक प्रयास'] के पु. १४६ पर लिखा है कि 'वह (ऐडम स्मिथ) परिचलन में लगे सिक्कों की मात्रा के सवाल के बारे में बिना कुछ कहे ही कन्नी काट जाते है और बहुत गलत ढंग से मुद्रा की महज एक माल के रूप में चर्चा करते हैं।" यह बात केवल वहीं तक सही है, जहां तक ऐडम स्मिथ ने रस्मी तौर पर (ex officio) मुद्रा पर विचार किया है। परन्तु कभी-कभी, जैसे कि अर्थशास्त्र की पुरानी प्रणालियों की मालोचना करते हुए, वह सही दृष्टिकोण अपनाते हैं। "प्रत्येक देश में सिक्के की मात्रा का उन मालों के मूल्य द्वारा नियमन होता है, जिनका उस सिक्के को परिचलन करना होता है . साल भर में किसी देश में किये जाने वाले मालों के क्रय और विक्रम के मूल्य के लिए मुद्रा की एक
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