पृष्ठ:कार्ल मार्क्स पूंजी १.djvu/१४५

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१४२ पूंजीवादी उत्पादन - मूल्यों का जोड़ और उनके स्पान्तरणों की मौसत तेजी मालूम हो, तो मुद्रा के रूप में बालू बहुमूल्य धातु की मात्रा उस पातु के मूल्य पर निर्भर करती है। ऊपर जो कुछ कहा गया है, उसके विरीत, बाम चालू माध्यम की मात्रा से निर्धारित होते हैं और चालू माध्यम की मात्रा किसी देश में पायी जाने वाली बहुमूल्य धातुओं की मात्रा पर निर्भर करती है। इस गलत धारणा को पहले-पहल जन्म देने वाले लोगों ने उसे इस परिकल्पना पर आधारित किया था कि जब माल और मुद्रा परिचलन में प्रवेश करते हैं, तब मालों का कोई काम नहीं होता और मुद्रा का कोई मूल्य नहीं होता, और एक बार परिचलन में प्रवेश कर जाने के बाद नाना प्रकार के मालों के एक पूर्ण विभाजक भाग का बहुमूल्य धातुओं के हरे के पूर्ण विभाजक के साथ विनिमय किया जाता है।' - . . निश्चित मात्रा की आवश्यकता होती है, ताकि उन मालों का परिचलन और सही उपभोगियों में वितरण हो सके , और वह देश उससे अधिक मुद्रा को काम में नहीं लगा सकता। परिचलन की नाली के भरने के लिए जितनी रकम काफ़ी होती है, उतनी वह लाजिमी तौर पर अपनी तरफ़ खींच लेती है, पर उससे ज्यादा को कभी अन्दर नहीं माने देती।" ("Wealth of Nations" ['राष्ट्रों का धन'], पुस्तक ४, मध्याय ११) इसी प्रकार अपनी पुस्तक को रस्मी तौर पर (ex officio) प्रारम्भ करते हुए ऐडम स्मिथ ने श्रम-विभाजन को मानों देवतामों के स्थान पर बैग दिया है। पर बाद को, अपनी अन्तिम पुस्तक में , जिसमें कि सार्वजनिक प्राय के स्रोतों की चर्चा की गयी है, उन्होंने यदा-कदा श्रम-विभाजन की अपने गुरु ए• फर्गुसन की भांति ही अत्यन्त कटु आलोचना की है। 1"जैसे-जैसे लोगों के पास सोना और चांदी बढ़ते जायेंगे , वैसे-वैसे निश्चय ही हर देश में चीजों के दाम भी बढ़ते जायेंगे, और इसलिए जब किसी देश में सोना और चांदी कम हो जाते हैं, तो तमाम चीजों के दामों का मुद्रा की इस कमी के अनुपात में घट जाना भी अनिवार्य हो जाता है।" (Jacob Vanderlint, "Money Answers all Things" [जैकब बैंडरलिन्ट , 'मुद्रा सब चीजों का जवाब है'], London, 1734, पृ० ५।) इस पुस्तक का एम के "Essays" ('निबंध') से ध्यानपूर्वक मुकाबला करने के बाद मेरे दिमाग में इस विषय में तनिक भी सन्देह नहीं रह गया है कि बैंडरलिन्ट की इस रचना से , जो निस्सन्देह एक महत्त्वपूर्ण रचना है, बम परिचित थे और उन्होंने उसका उपयोग किया था। बार्बोन का और उसके बहुत पहले के अन्य लेखकों का भी यह मत था कि दाम चालू माध्यम की मात्रा से निर्धारित होते है। वैडरलिन्ट ने लिखा है : "अनियंत्रित व्यापार से कोई असुविधा नहीं पैदा हो सकती, बल्कि बहुत बड़ा लाभ हो सकता है, क्योंकि यदि उससे राष्ट्र की नकदी कम हो जाती है, जिसे कम होने से रोकना ही व्यापार पर लगाये हुए बंधनों का उद्देश्य होता है, तो जिन राष्ट्रों को वह नकदी मिलेगी, उनके यहां निश्चय ही नकदी के बढ़ने के साथ-साथ हर चीज के दाम चढ़ जायेंगे। और... हमारे कारखानों की बनी चीजें और अन्य सब वस्तुएं शीघ्र ही इतनी सस्ती हो जायेंगी कि व्यापार का संतुलन हमारे पक्ष में हो जायेगा और उससे फिर मुद्रा हमारे यहां लोट पायेगी" (उप० पु०, पृ० ४३, ४)। यह एक स्वतःस्पष्ट प्रस्थापना है कि हर अलग-अलग प्रकार के माल का दाम परिचलन में शामिल तमाम मालों के दामों के जोड़ का एक भाग होता है। लेकिन यह बात कतई समझ में नहीं पाती कि उपयोग-मूल्यों का, जिनकी कि एक दूसरे से तुलना नहीं की जा सकती, . .