भाग २ मुद्रा का पूंजी में रूपान्तरण . . चौथा अध्याय पूंजी का सामान्य सूत्र मालों का परिचलन पूंची का प्रस्थान-बिनु है। मालों का उत्पादन, उनका परिचलन पौर परिचालन का वह अधिक विकसित प, बो वाणिज्य कहलाता है, इनसे बह ऐतिहासिक पापार तैयार होता है, जिससे पूंजी उद्भूत होती है। पूंजी का माधुनिक इतिहास १६ वीं पाताम्बी में संसार-व्यापी वाणिज्य तथा संसार-व्यापी मंग की स्थापना से प्रारम्भ होता है। यदि हम मालों के परिचलन के भौतिक सार को, अर्थात् नाना प्रकार के उपयोग मूल्यों के विनिमय को अनदेखा कर और केवल परिचलन की इस प्रक्रिया से उत्पन्न होने वाले भार्षिक मों पर ही विचार करें, तो हम मुद्रा को ही इसका अन्तिम फल पाते हैं। मालों के परिवलन का यह अन्तिम फल यह पहला म है, जिसमें पूंची प्रकट होती है। अपने ऐतिहासिक रूप में पूंची भू-सम्पत्ति के मुकाबले में पहले अनिवार्य रूप से मुद्रा का म धारण करती है। पूंजी पहले पहल मुद्रागत धन के रूप में, सौदागर और सूरजोर की पूंजी के रूप में सामने पाती है। परन्तु यह जानने के लिए कि पूंजी पहले-पहल मुद्रा के म में प्रकट होती है, पूंजी की उत्पति का विक करने की कोई पावश्यकता नहीं है। यह हम हर रोज अपनी प्रांतों के सामने होते हुए देख सकते हैं। हमारे समाने में भी समस्त नयी पूंजी शु-शुरू में मुद्रा के रूप में रंगमंच पर उतरती है, यानी मंग में पाती है, चाहे बह मंग मालों की हो, या मन की, अवा मुद्रा की; पार फिर इस मुद्रा को एक निश्चित प्रक्रिया के बारा पूंजी में पान्तरित होना पड़ता है। बह मुद्रा, बो केवल मुद्रा है, और यह मुद्दा, वो पूंची है, उनके बीच हम वो पहला मेव देखते हैं, वह इससे अधिक और कुछ नहीं होता कि उनके परिचलन के मों में अन्तर होता है। प्रभुत्व और दासत्व के व्यक्तिगत सम्बंधों पर पाधारित सत्ता, जो भू-सम्पत्ति की वेन होती है, और वह अवैयक्तिक सत्ता, जो मुद्रा से प्राप्त होती है, उनका पतिरेक को फ्रांसीसी कहावतों में बहुत अच्छी तरह व्यक्त हुमा है: "Nulle terre sans seigneur" ("विना श्रीमन्त के कोई भूमि नहीं होती") और "Largent na pas de mattre" ("मुद्रा का स्वामी कोई नहीं होता")। .
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