१७० पूंजीवादी उत्पादन बोनों परिपव दो एक सी परस्पर विरोधी प्रवस्थानों में परिणत किये जा सकते हैं, जिनमें से एक मा-मु, यानी विक्री, और दूसरी मु-मा, पानी जरीब, होती है। इनमें से प्रत्येक अवस्था में ये हो दो भौतिक तत्व-कोई माल और मुद्रा-और पार्षिक नाटक के ये ही वो पात्र - एक प्राहक और विता-एक दूसरे के मुकाबले में बड़े होते हैं। प्रत्येक परिपष उन्हीं दो परस्पर विरोधी अवस्याओं का मेल होता है, और हर बार यह मिलाप सौदा करने वाले तीन पक्षों के हस्तक्षेप के बरिये सम्पन्न होता है, जिनमें से एक केवल बेचता है, दूसरा केवल खरीदता है और तीसरा बरीवता भी है और बेचता भी है। लेकिन परिपष मा-मु-मा और परिपष मु-मा-मु के बीच पहला और सबसे प्रमुख भेद यह है कि उनमें दो अवस्थाएं एक दूसरे के उल्टे क्रम में माती हैं। मालों का साधारण परिचलन विश्य से शुरू होता है और क्रय के साथ समाप्त हो जाता है, उपर पूंजी के रूप में मुद्रा का परिचलन कय से शुरू होता है और विक्रय के साथ समाप्त हो जाता है। एक सूरत में प्रस्थान-बिनु और लक्ष्य दोनों माल होते हैं, दूसरी में दोनों मुद्रा होते हैं। पहले रूप में गति मुद्रा के हस्तक्षेप द्वारा, दूसरे रूप में वह एक माल के हस्तक्षेप द्वारा सम्पन्न होती है। परिचलन मा-मु-मा में मुद्रा अन्त में माल में बदल दी जाती है, जो एक उपयोग- मूल्य का काम करता है। अर्थात् मुद्रा एक बार में सदा के लिए खर्च हो जाती है। उसके उल्टे रूप, यानी मु-मा-मु में, इसके विपरीत, प्राहक मुद्रा इसलिए लगाता है कि बेचने बाले के रूप में वह उसे वापिस पा जाये। अपना माल खरीदकर वह इस उद्देश्य से परिचलन में मुद्रा गलता है कि उसी माल को बेचकर वह मुद्रा को फिर परिचलन से निकाल ले। वह मुद्रा को अपने पास से जाने देता है, किन्तु इस चतुराई भरे उद्देश्य से कि वह उसे फिर पापिस मिल जाये। इसलिए इस सूरत में मुद्रा खर्च नहीं की जाती, बल्कि महब पेशगी के रूप में लगायी जाती है।' परिपब मा-मु-मा में मुद्रा का वही दुकड़ा दो बार अपनी जगह बदलता है। प्राहक से विता उसे पाता है, और वह उसे किसी और विकता को दे देता है। पूरा परिचलन, बो माल के बदले में मुद्रा की प्राप्ति से प्रारम्भ होता है, माल के बदले में मुद्रा को प्रदायगी से समाप्त हो जाता है। परिपष मु-मा-मु में उसका ठीक उल्टा होता है। यहां मुद्रा का दुकड़ा नहीं, बल्कि माल दो बार अपनी जगह बदलता है। ग्राहक विक्रेता के हाप से माल ले लेता है और फिर उसे किसी अन्य प्राहक को दे देता है। जिस प्रकार मालों के साधारण परिचलन में मुद्रा के उसी टुकड़े के दो बार अपना स्थान परिवर्तन करने के फलस्वरूप मुद्रा एक हाप से दूसरे हाथ में पहुंच जाती है, ठीक उसी प्रकार यहां पर उसी माल के दो बार अपना स्थान परिवर्तन करने के फलस्वरूप मुद्रा फिर अपने प्रस्थान-बिनु पर लौट पाती है। मुद्रा का इस तरह प्रत्यावर्तन इस बात पर निर्भर नहीं करता कि माल जितने में खरीदा . 1"जब कोई चीज फिर बेचने के उद्देश्य से खरीदी जाती है, तब उसमें जो रकम इस्तेमाल होती है, उसके बारे में कहा जाता है कि इतनी मुद्रा पेशगी के रूप में लगायी गयी ; जब वह बेचने के उद्देश्य से नहीं खरीदी जाती, तब कहा जा सकता है कि वह खर्च कर गयी।" -(James Stewart, “Works” etc. Edited by General Sir James Steuart, his son [जेम्स स्टीवर्ट, 'रचनाएं' इत्यादि। उनके पुत्र , जनरल सर जेम्स स्टीवर्ट द्वारा सम्पादित], London, 1805, बण्ड १, पृ. २७४।) .
पृष्ठ:कार्ल मार्क्स पूंजी १.djvu/१७३
दिखावट