पूंजी का सामान्य सूत्र १७१ . गया है, उससे ज्यादा में बेचा जाये। इस बात से केवल वापिस लौटने वाली मुद्रा की मात्रा पर प्रभाव पड़ता है। मुद्रा का प्रत्यावर्तन उसी समय सम्पन्न हो जाता है, जब खरीदा हा माल फिर से बेच दिया जाता है, अर्थात् , दूसरे शब्दों में, जब परिपष मु-मा- मु सम्पूर्ण हो जाता है। इसलिए, यहाँ पूंजी के रूप में मुद्रा के परिचलन और केवल मुद्रा के रूप में उसके परिचलन में एक सहन पाह्य भेव हमारे सामने प्रा जाता है। परिपब मा-मु-मा उसी समय पूर्णतया समाप्त हो जाता है, जिस समय एक माल की बिक्री से मिली हुई मुद्रा किसी और माल की खरीब के फलस्वरूप फिर हाथ से निकल जाती है। इसके बाद भी यदि मुद्रा फिर अपने प्रस्थान-बिन्दु पर लौट जाती है, तो यह केवल इस किया के नवीकरण अथवा बोहराये जाने के फलस्वरूप ही हो सकता है। यदि मैं एक क्वार्टर अनाज ३ पौष में बेचता हूं और इस ३ पौड को कम से कपड़े खरीद लेता हूं, तो वहां तक मेरा सम्बंध है, मुद्रा सदा के लिए खर्च हो जाती है। उसके बाद कपड़ों का सौदागर उसका मालिक हो जाता है। अब यदि मैं एक क्वार्टर अनाज और बेचूं, तो, बाहिर है, मुद्रा मेरे पास लौट भाती है, लेकिन वह पहले सौदे के परिणाम के रूप में नहीं, बल्कि सौदे के बोहराये जाने के परिणामस्वरूप लौटती है। और जब मैं कोई नयी खरीदारी करके इस दूसरे सौदे को पूरा कर देता हूं, तो मुद्रा तुरन्त ही फिर मेरे पास से चली जाती है। इसलिए परिपष मा-मु-मा में मुद्रा के खर्च किये जाने का मुद्रा के वापिस लौटने से कोई सम्बंध नहीं होता। इसके विपरीत, मु-मा- मु में मुद्रा का वापिस लौटना स्वयं सर्च किये जाने की प्रणाली की एक पावश्यक शर्त है। यदि मुद्रा इस प्रकार वापिस नहीं लौटती, तो किया अपनी पूरक एवं अन्तिम अवस्था-विक्री-की अनुपस्थिति के कारण असफल हो जाती है, या प्रक्रिया बीच में रुक जाती है और अपूर्ण रह जाती है। परिपप मा-मु-मा एक माल से प्रारम्भ होता है और दूसरे माल पर समाप्त हो जाता है, जो कि परिचलन से बाहर जाकर उपभोग में चला जाता है। उपभोग, पावश्यकताओं की तुष्टि, या एक शब में कहें, तो उपयोग-मूल्य उसका लक्ष्य एवं उद्देश्य होता है। इसके विपरीत, परिपथ मु-मा- मु मुद्रा से प्रारम्भ होता है और मुद्रा पर समाप्त होता है। प्रतः उसका प्रमुख उद्देश्य तथा वह लक्ष्य, जो उसे प्राकर्षित करता है, केवल विनिमय-मूल्य होता है। मालों के साधारण परिचलन में परिपव के दो परम बिन्दुओं का एक सा पार्षिक म होता है। ये दोनों माल, और वह भी समान मूल्य के माल होते हैं। किन्तु उसके साथ-साथ के गुणों में भिन्न दो उपयोग-मूल्य भी होते हैं, जैसे कि अनाज और कपड़ा। उत्पादित वस्तुओं का विनिमय, या उन अलग-अलग सामग्रियों का विनिमय, जिनमें समाज का श्रम निहित है, यहां पर गति का मापार होता है। परिपष मु-मा-म में यह बात नहीं होती। पहली नजर में यह परिपष पुनरुक्ति-सूचक होने के नाते उद्देश्यहीन मालूम होता है। उसके दोनों चरम बिनुओं का एक सामार्षिक प है। वे दोनों मुद्रा है, और इसलिए वे गुणों में भिन्न उपयोग- मूल्य नहीं हैं। कारण कि मुद्रा तो केवल मालों का यह बबला हुमा स्प होती है, जिसमें उनके विशिष्ट उपयोग-मूल्यों का लोप हो जाता है। पहले १०० पौड का कपास के सा विनिमय करना और फिर इसी कपास का पुनः १०० पोड के साथ विनिमय कर लेना-यह महब मुद्रा के साथ मुद्रा का विनिमय करने का एक घुमावदार ढंग ही है, जिसमें एक वस्तु का उसी वस्तु के साथ विनिमय किया जाता है, और यह किया जितनी बेतुकी है, उतनी ही 1 -
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