पहले जर्मन संस्करण की भूमिका यह रचना, जिसका प्रथम सड में अब जनता के सामने पेश कर रहा हूं, मेरी पुस्तिका •Zur Kritik der Politischen Dekonomte" ('प्रर्षशास्त्र की समीक्षा का एक प्रयास') की ही एक अगली कड़ी है। वह पुस्तिका १८५६ में प्रकाशित हुई थी। इस काम के पहले हिस्से और उसकी बाद की कड़ी के बीच समय का जो इतना बड़ा अन्तर विखाई देता है, उसका कारण अनेक वर्ष लम्बी मेरी बीमारी है, जिससे मेरे काम में बार-बार बाधा पड़ती रही। उस पुरानी रचना का सारस्तत्व इस पुस्तक के पहले तीन प्रध्यायों में संक्षेप में दे दिया गया है। यह केवल संदर्भ और पूर्णता की दृष्टि से ही नहीं किया गया है। विषय-वस्तु का प्रस्तुतीकरण सुधारा गया है। उस पुरानी किताब में बहुत सी बातों की तरफ़ इशारा भर किया गया था; पर इस पुस्तक में जहां तक परिस्थितियों ने इसकी इजाजत दी है, उनपर अधिक पूर्णता के साथ विचार किया गया है। इसके विपरीत, उस किताब में जिन बातों पर पूर्णता के साप विचार किया गया था, इस ग्रंथ में उनको छुमा भर गया है। मूल्य और मुद्रा के सिवान्तों के इतिहास से सम्बंषित हिस्से अब मलबत्ता बिल्कुल छोड़ दिये गये हैं। किन्तु जिस पाठक ने उस पुरानी किताब को पड़ा है, वह पायेगा कि पहले प्रध्याय के फुटनोटों में इन सिद्धान्तों के इतिहास से सम्बंध रखने वाली बहुत सी नयी सामग्री का हवाला दे दिया गया है। यह नियम सभी विज्ञानों पर लागू होता है कि विषय प्रवेश सबा कठिन होता है। इसलिये पहले प्रध्याय को और विशेषकर उस अंश को, जिसमें मालों का विश्लेषण किया गया है, समझने में सबसे अधिक कठिनाई होगी। उस हिस्से को, जिसमें मूल्य के सार तथा मूल्य के परिमाण की अधिक विशेष रूप से चर्चा की गयी है, मैंने जहां तक सम्भव हुमा है, सरल बना दिया है। मूल्य-रूप, जिसकी पूरी तरह विकसित शकल मुद्रा-रूप है, बहुत ही सीपी और सरल चीज है। फिर भी मानव मस्तिष्क को उसकी तह तक पहुंचने का प्रयत्न करते हुए . . . यह इसलिये और भी मावश्यक था कि शुल्जे-डेलिच के मत का खण्डन करने के लिये लिखी गयी फ़ेर्डिनंड लसाल की रचना के उस हिस्से में भी, जिसमें वह इन विषयों की मेरी व्याख्या का "बौद्धिक सार-तत्व" देने का दावा करता है, महत्त्वपूर्ण गलतियां मौजूद हैं। यदि फेर्डिनंड लसाल ने अपनी आर्थिक रचनामों की समस्त साधारण सैद्धान्तिक स्थापनाएं, जैसे कि पूंजी के ऐतिहासिक स्वरूप तथा उत्पादन की परिस्थितियों और उत्पादन की प्रणाली के बीच जाने वाले सम्बंध से ताल्लुक रखने वाली स्थापनाएं इत्यादि, और यहां तक कि वह शब्दावली भी, जिसे मैंने रचा है, मेरी रचनामों से मेरा उल्लेख किये बिना ही अक्षरशः उठा ली है, तो स्पष्ट है कि उन्होंने प्रचार के उद्देश्य से ही ऐसा किया है। मलबत्ता इन स्थापनामों का उन्होंने जिस तरह विस्तारपूर्वक विवेचन किया है और उनको जिस तरह लागू किया है, मैं यहां उसका जिक्र नहीं कर रहा हूं। उससे मेरा कोई सम्बंध नहीं है।
पृष्ठ:कार्ल मार्क्स पूंजी १.djvu/१८
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