भूमिका . २,००० वर्ष से ज्यादा हो गये हैं, पर बेतव। लेकिन, दूसरी तरफ, उससे कहीं अधिक बटिल और संश्लिष्ट स्मों का विश्लेषण करने में लोग सफलता के कम से कम काफ्री नवदीक पहुंच गये हैं। इसका क्या कारण है? यही कि एक सजीव इकाई के रूप में शरीर का अध्ययन करना उस शरीर के जीवकोवों के अध्ययन से ज्यादा मासान होता है। इसके अलावा, प्रार्षिक रूपों का विश्लेषण करने में न तो सूक्ष्मदर्शक यंत्रों से कोई मदद मिल सकती है और न ही रासायनिक प्रतिकर्मकों से। दोनों का स्थान तत्त्व-अपकर्षण की शक्ति को लेना होगा। लेकिन पूंजीवादी समाज में मन की पैदावार का माल-स-या माल का मूल्य-रूप-प्रार्षिक जीवकोष- स्प होता है। सतही नबर रखने वाले पाक को लगेगा कि इन स्पों का विश्लेषण करना फ़िजूल ही बहुत छोटी-छोटी चीजों में माषा सपाना है। बेशक, यह छोटी-छोटी चीजों में माषा खपाने वाली बात है, पर यह सूक्मवी शरीर-रचना विज्ञान के माषा सपाने के समान ही है। प्रतएव, मूल्प-रूप वाले एक हिस्से को छोड़कर इस पुस्तक पर कठिन होने का प्रारोप नहीं लगाया जा सकता। पर बाहिर है, मैं ऐसे पाठक को मानकर चलता हूं, जो एक नयी चीन सोलने को और इसलिये खुद अपने विमान से सोचने को तैयार है। भौतिक विज्ञान का विशेषज्ञ या तो भौतिक घटनामों का उस समय पर्यवेक्षण करता है, जब वे अपने सबसे प्रतिनिधि रूप में होती हैं और जब वे विघ्नकारी प्रभावों से अधिकतम मुक्त होती है, और या वह जहां कहीं सम्भव होता है, ऐसी परिस्थितियों में खुद प्रयोग करके देखता है, जहां घटना का सामान्य रूप सुनिश्चित होता है। इस रचना में मुझे उत्पादन की पूंजीवादी प्रणाली और इस प्रणाली से सम्बड उत्पादन और विनिमय की परिस्थितियों का अध्ययन करना है। अभी तक इनकी मूल भूमि इंगलग है। यही कारण है कि अपने सैद्धान्तिक विचारों का प्रतिपावन करते हुए मैंने इंगलंग को मुख्य उदाहरण के रूप में इस्तेमाल किया है। किन्तु यदि जर्मन पाठक इंगलैश के प्रायोगिक तथा खेतिहर मजदूरों की हालत को देखकर अपने कंधे मटक देगा या बड़े प्राशावादी ढंग से अपने दिल को यह दिलासा देगा कि बैर, जर्मनी में कम से कम इतनी खराब हालत नहीं है, तो मुझे उससे साफ़-साफ़ कह देना पड़ेगा कि “De te fabula narratur!" ("वर्पण में यह पाप ही की सूरत है!") असल में सवाल यह नहीं है कि पूंजीवादी उत्पादन के स्वाभाविक नियमों के परिणामस्वरूप जो सामाजिक विरोष पैदा होते हैं, वे बहुत या कम बढ़े हैं। सवाल यहाँ जुन इन नियमों का और इन प्रवृत्तियों का है, जो कठोर पावश्यकता के साथ कुछ अनिवार्य नतीजे पैदा कर रहे हैं। प्रौद्योगिक दृष्टि से अधिक विकसित देश कम विकसित देश के सामने केवल उसके भविष्य का चित्र अंकित कर देता है। लेकिन इसके अलावा एक बात और भी है। जर्मन लोगों के यहां वहां-वहां पूंजीवादी उत्पावन पूरी तरह देशो चीन बन गया है (उदाहरण के लिये, उन कारखानों में, जिनको सचमुच फैक्टरियां कहा जा सकता है), वहां हालत इंगलैग से भी खराब है, क्योंकि यहां पिटरी-कानूनों का सन्तुलन नहीं है। बाकी तमाम क्षेत्रों में, योरपीय महाद्वीप के पश्चिमी भाग के अन्य सब देशों की तरह, हमें भी न सिर्फ पूंजीवादी उत्पादन के विकास के कष्ट ही सहन करने पड़ रहे हैं, बल्कि इस विकास की पूर्णता से पैदा होने वाली तकलीफें भी सहन करनी पर रही हैं। माधुनिक बुराइयों के साथ-साथ विरासत में मिली हुई बुराइयों की बड़ी तादाद भी हमारे उपर सितम ढा रही है। ये पुराइयां उत्पादन की उन प्राचीन प्रणालियों के निष्क्रिय प से अभी तक बचे रहने के फलस्वरूप पैदा होती हैं, जिनके साथ अनेक सामाजिक . .
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