पृष्ठ:कार्ल मार्क्स पूंजी १.djvu/१९२

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पूंजी के सामान्य सूत्र के विरोध १८९ निन्दा की जाती है (क्योंकि वह प्रकृति पर नहीं, बल्कि एक दूसरे को धोखा देने पर पाषारित है), इसलिए यह सर्वथा उचित है कि सरबोर से घृणा की जाती है, क्योंकि उसका नफा र मुद्रा से उत्पन्न होता है और उसकी मुद्रा उस काम में नहीं लायी जाती, जिस काम के लिए मुद्रा का प्राविष्कार हुमा था। कारण कि मुद्रा का जन्म मालों का विनिमय कराने के लिए हुमा था, लेकिन सूब मुद्रा में से और अधिक मुद्रा बना गलता है। इसी से उसका यह नाम पड़ा है ( "noxoc" का पर्व है "सूब" और "पैदा की हुई चीन")। कारण कि जो उत्पन्न होते हैं, वे अपने उत्पन्न करने वालों के समान होते हैं। लेकिन सब मुद्रा से पैदा होने वाली मुद्रा होता है, और इसलिए जीविका कमाने के जितने डंग है, उनमें यह डंग प्रकृति के सबसे अधिक विपरीत है।"1 अपनी खोज के दौरान में हम पायेंगे कि सौदागरों की पूंजी और सूब देने वाली पूंजी, दोनों ही व्युत्पावित म है, और साथ ही यह बात भी स्पष्ट हो जायेगी कि इतिहास में ये यो म पूंजी के माधुनिक एवं प्रामाणिक म के पहले क्यों प्रकट होते हैं। हम यह स्पष्ट कर चुके हैं कि अतिरिक्त मूल्य परिचलन द्वारा पैदा नहीं किया जा सकता और इसलिए उसके निर्माण के समय कोई ऐसी बात पृष्ठभूमि में होनी चाहिए, जो जुन परिचलन में दिखाई न देती हो। तो क्या अतिरिक्त मूल्य परिचलन के सिवा और कहीं पर पैदा हो सकता है? मालों के मालिकों के सम्बंध जहाँ तक उनके मालों के द्वारा निर्धारित होते हैं, वहां तक उनके समस्त पारस्परिक सम्बंधों का कुल मोड़ ही तो परिचलन कहलाता है। और परिचलन के सिवा तो माल के मालिक का केवल अपने माल से ही सम्बंध होता है। 'जहां तक मूल्य का ताल्लुक है, यह सम्बंध केवल इतने तक ही सीमित होता है कि माल में उसके श्रम की एक मात्रा निहित होती है, जो कि एक निश्चित सामाजिक मापदण से मापी जाती है। यह मात्रा माल के मूल्य द्वारा व्यक्त होती है, और चूंकि मूल्य का परिमाण लेला-मुद्रा के रूप में अभिव्यक्त किया जाता है, इसलिए यह मात्रा बाम के द्वारा भी व्यक्त होती है, जो हम माने लेते हैं कि यहाँ १० पौण है। लेकिन ऐसा नहीं होता कि माल का मूल्य और उस मूल्य का अतिरिक्त भाग भी उसके श्रम का प्रतिनिधित्व करें। यानी उसके श्रम का प्रतिनिधित्व वह वाम नहीं करता, गो १० और साथ ही ११ का भी नाम होता है। या यूं कहिये कि उसके मन का प्रतिनिधित्व कोई ऐसा मूल्य नहीं करता, जो स्वयं अपने से बड़ा होता है। माल का मालिक मम करके मूल्य पैदा कर सकता है, पर वह स्वतः बढ़ने वाला मूल्य पैदा नहीं कर सकता। वह नया भम करके और इस प्रकार उसके हाथ में पहले से जो मूल्य है, उसमें नया मूल्य जोड़कर, जैसे, मिसाल के लिए, चमड़े को जूतों में बदलकर, अपने माल का मूल्य बढ़ा सकता है। उसी सामग्री का अब पहले से अधिक मूल्य हो जाता है, क्योंकि अब उसमें पहले से ज्यादा मम सर्च किया गया है। इसलिए बूतों का मूल्य चमड़े से अधिक होता है, लेकिन चमड़े का मूल्य वही रहता है, जो पहले पा। वह बुब अपना विस्तार नहीं कर सका है। बूते बनाये जाने के दौरान में चमड़ा बुर अपने में कोई अतिरिक्त मूल्य - . . . - . 1Aristotel, उप० पु., अध्याय "मण्डी की साधारण अवस्था में मुनाफ़ा विनिमय के द्वारा नहीं कमाया जाता। यदि मुनाफा विनिमय के पहले से मौजूद न होता, तो वह उस सौदे के बाद भी नहीं हो सकता (Ramsay, उप. पु., पृ. १४।)